Ek Salaam Mahanayakon Ke Naam
By :
PK Khurana
Editor
samachar4media.com
Pramod Krishna Khurana
प्रमोद कृष्ण खुराना
Pioneeing Alternative Journalism in India
एक सलाम, महानायकों के नाम !
पी. के. खुराना
15 फरवरी, 2010 का दिन मेरे लिए शायद सिर्फ इसलिए विशेष रहता कि एक्सचेंज4मीडिया समूह की मीडिया, एडवरटाइजिंग, जनसंपर्क, विज्ञापन और मार्केटिंग की खबरें देने वाली हिंदी भाषा की नई वेबसाइट समाचार4मीडिया.कॉम का लांच हुआ। यह घटना निश्चय ही मेरे जीवन की अहमतरीन घटनाओँ में से एक थी क्योंकि मैं इस वेबसाइट का संपादक हूं। लेकिन इसी दिन मुझे आईबीएन-18 नेटवर्क द्वारा आयोजित सिटिजन जर्नलिस्ट अवार्ड कार्यक्रम में जाने का निमंत्रण मिला, अत: शाम होते न होते मैं होटल ताज पैलेस जा पहुंचा।
ये पुरस्कार उन नागरिकों को दिये जाते हैं जो बेहतर कल की इच्छा से सिस्टम में बदलाव लाने के लिए निर्भीक होकर अपनी लड़ाई लड़ते हैं और समाचार भेजते हैं। ये पुरस्कार ‘सिटिजन जर्नलिस्ट फाइट बैक’, ‘सिटिजन जर्नलिस्ट सेव योर सिटी’, ‘सिटिजन जर्नलिस्ट बी द चेंज’, ‘सिटिजन जर्नलिस्ट वीडियो’, ‘सिटिजन जर्नलिस्ट फोटो’ और ‘सिटिजन जर्नलिस्ट स्पेशल’ नामक 6 श्रेणियों में बंटे हुए हैं।
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने विजेताओं को सम्मानित किया। स्पष्टतः पुरस्कार विजेताओं के लिए अमिताभ बच्चन से बातचीत करना और उनके हाथों से पुरस्कार पाना उनके जीवन की सबसे बड़ी घटना थी परंतु विजेताओं की शानदार कारगुज़ारी ने मुझे यह मानने पर विवश कर दिया कि पुरस्कारों के विजेता लोग असली महानायक हैं, और इन महानायकों की गौरव गाथा मेरे लिए सदैव प्रेरणा का अजस्र स्रोत रहेगी।
देह व्यापार धंधे में लिप्त फरीदाबाद की पूजा ने इस काले धंधे से न केवल खुद छुटकारा पाया बल्कि दूसरों का जीवन भी बचाया, इलाहाबाद के राम प्यारे लाल श्रीवास्तव ने नरेगा और गरीबी रेखा से नीचे जी रहे परिवारों के लिए बनने वाले राशन कार्डों में हो रहे घपले की पोल खोली, जम्मू के अरुण कुमार ने प्रदूषण के कारण बच्चों में बढ़ रही अपंगता का राज़ खोला, बृजेश कुमार चौहान दिल्ली के जल माफिया के खिलाफ लड़े तथा इंदु प्रकाश ने दिल्ली की बेघर महिलाओं के लिए रैन बसेरे के इंतजाम की लड़ाई लड़ी, झारखंड के गढ़वा के धन्नंजय कुमार सिंह ने बेसहारा लड़कियों की शादियां करवाईं, दिल्ली के केके मुहम्मद ने प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए स्कूल खुलवाये। वीडियो कैटेगरी के विजेता औरंगाबाद के भीमराव सीताराम वथोड़े ने अपने आर्ट कालेज की दयनीय दशा के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और फोटो कैटेगरी में बुडगाम, काश्मीर के डा. मुजफ्फर भट्ट ने सरकारी परियोजना में बाल श्रम के दुरुपयोग की पोल खोली। ‘सिटिजन जर्नलिस्ट स्पेशल’ के तहत मेरठ में बाल श्रम के खिलाफ आवाज बुलंद करके 48 बच्चों को बाल श्रम से छुटकारा दिलवाने वाली 13 वर्षीया बच्ची रजिया सुलतान ने बाल श्रम में लगे हुए बच्चों के मां-बाप को मनाकर उन बच्चों को बाल श्रम से छुटकारा दिलवाया और स्कूल में दाखिला दिलवाया। यही नहीं, स्कूल अधिकारियों की ज्यादतियों के विरुद्ध निर्भीक आवाज उठाई और उन्हें झुकने पर मजबूर किया। रजिया सुलतान एक अत्यंत साधारण परिवार की बच्ची है, पर उसकी बुद्धि, निर्भीकता और हाजिर जवाबी देखते ही बनती है। रजिया सुलतान अमिताभ के प्रभामंडल से प्रभावित अवश्य थी परंतु वह अमिताभ के समक्ष भी उतनी ही बेबाक और निर्भीक नज़र आई । मुंबई में रेलवे दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को डाक्टरी सहायता उपलब्ध करवाने वाले समीर ज़ावेरी तथा अपने स्कूल में सफाई की लड़ाई लड़ने वाले दिल्ली के अपंग अध्यापक संजीव शर्मा मेरे लिए अमिताभ से कहीं बड़े लोग हैं जिन्होने बिना किसी लालच के दूसरों की भलाई के लिए खुद आगे बढ़कर काम किया। इन विजेताओं में से किसी एक को कम या ज्यादा नंबर देना संभव नहीं है। इन सबकी उपलब्धियां बेमिसाल हैं।
परंतु, मै अपने पत्रकार भाइयों से कुछ और कहना चाहता हूं। इन पुरस्कार विजेताओं में शामिल गढ़वा के धन्नंजय कुमार सिंह पेशे से एक पत्रकार है। वे अपने अखबार के लिए खबर ढूंढ़ने के उद्देश्य से जिन बेसहारा बच्चों से मिलने गए, वे सिर्फ उनकी खबर छापने तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने आगे बढ़कर इन बेसहारा बच्चों का हाथ थामा, शहर के लोगों के पास व्यक्तिगत रूप से जाकर शहर निवासियों को उन बेसहारा बच्चों की त्रासदी से अवगत करवाया और उनके ससम्मान जीवन यापन का प्रबंध किया, लड़कियों की शादियां करवाईं।
मेरा स्पष्ट मत है कि पत्रकार को सिर्फ उपदेशक नहीं होना चाहिए। धन्नंजय कुमार सिंह का उदाहरण हमारे सामने है। पत्रकार भी इसी समाज का अंग हैं और हर दूसरे व्यक्ति के काम में खामी निकालने वाली हमारी पत्रकार बिरादरी के लिए धन्नंजय का उदाहरण एक बड़ा सबक है।
आग लगाकर आत्महत्या के लिए उतारू किसी व्यक्ति के बढ़िया फोटो खींचना और उसे मरने देना किसी फोटो जर्नलिस्ट के लिए गर्व का विषय हो सकता है, समाज के लिए वह सिर्फ शर्म का विषय है कि फोटो जर्नलिस्ट ने अपने को सिर्फ एक पेशेवर फोटोग्राफर माना, इन्सान नहीं माना, इन्सानियत नहीं दिखाई।
धन्नंजय कुमार सिंह हर तरह से शाबासी के हकदार हैं कि उन्होंने बढ़िया पत्रकार होने का सुबूत देते हुए इन्सानियत का सुबूत भी दिया, जिम्मेदार नागरिक होने और संवेदनशील इन्सान होने का सुबूत भी दिया।
धन्नंजय सहित इन सभी महानायकों को मेरा सलाम !
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