पीके खुराना
पत्रकारिता में समाचार, रिपोर्ताज, फीचर आदि कई विधाएं हैं। हर व्यक्ति किसी न किसी विधा में स्पेशलिस्ट बन सकता है। कोई अच्छे समाचार लिख सकता है और कोई दूसरा बढिय़ा फीचर लिख सकता है। कुछ लोग हरफनमौला भी हो सकते हैं, होते ही हैं। अकेले खबरों की ही बात करें तो बीट वितरण भी स्पेशलाइज़ेशन की ही एक प्रकार है कि आप एक क्षेत्र के अधिक से अधिक लोगों के संपर्क में हैं, उस क्षेत्र के लोग आपको जानते हैं और आप उन्हें जानते हैं, इसलिए वांछित जानकारी बिना ज्य़ादा मेहनत के आपको मिल जाती है। बीट वितरण का दूसरा लाभ यह है कि उस क्षेत्र विशेष से संबंधित आपका ज्ञान बढ़ जाता है और उसकी शब्दावली पर आपकी पकड़ हो जाती है। इससे उस विषय विशेष में आपकी विशेषज्ञता बन जाती है।
बीट वितरण में ही कुछ आप अपने लिए कुछ अलग प्रकार की बीट भी चुन सकते हैं। उससे भी आपकी विशेषज्ञता बढ़ेगी, आपके लेखन में धार आयेगी, गहराई आयेगी और आपकी प्रसिद्धि बढ़ेगी।
मार्केटिंग के कुछ नियम ऐसे हैं जिन्हें यदि हम लेखन से जोड़ कर देखें तो लेखकों की प्रसिद्घि और सफलता में उनकी उपयोगिता को कम करके नहीं आंका जा सकता। मार्केटिंग का एक महत्वपूर्ण नियम “निश मार्केटिंग” के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है किसी विशिष्ट ग्राहकवर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक विशिष्ट उत्पाद का उत्पादन और विपणन। जैसे वॉटर प्योरीफायर, इंस्टेंट कॉफी आदि। एक विशेष किस्म के ग्राहकवर्ग के लिए इन वस्तुओं का उत्पादन आरंभ किया गया और अपनी नवीन विशेषताओं के कारण ये वस्तुएं एक खास ग्राहकवर्ग में लोकप्रिय हुईं। निश मार्केटिंग के नियमानुसार किसी विशिष्ट ग्राहकवर्ग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनके लिए किसी विशिष्ट उत्पाद का निर्माण अथवा उत्पादन किया जाता है। वह उत्पादन चूंकि किसी एक खास ग्राहकवर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है अत: उस ग्राहकवर्ग में वह तुरंत लोकप्रिय हो जाता है। वस्तुत: देखें तो साहित्य की हर नयी विधा तथा किसी भी एक विधा में कोई नया प्रयोग निश मार्केटिंग के नियम का ही विस्तार है। कोई सामाजिक उपन्यास पढऩा पसंद करता है तो कोई दूसरा केवल जासूसी उपन्यास ही पढ़ता है। दोनों किस्म के पाठकों का एक अलग वर्ग है। कला फिल्मों और व्यावसायिक फिल्मों का अलग दर्शकवर्ग है। यह निश मार्केटिंग के नियम के उपयोग का सटीक उदाहरण है।
यूं कहा जाना चाहिए कि जीवन गतिमान है और जीवन के हर क्षेत्र में नयी आवश्यकताएं जन्मती रहती हैं। उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नये प्रयोग होते रहते हैं। जो प्रयोग किसी विशिष्ट आवश्यकता की पूर्ति में सफल होते हैं वे लोकप्रिय भी होते हैं और उनका प्रचलन बना रहता है, अन्य धीरे-धीरे लुप्त हो जाते हैं।
पेशेवर पत्रकारों से समाचार-लेखन की बात करते समय इसकी चर्चा का एक विशिष्ट उद्देश्य है। किसी भी क्षेत्र में जब कोई नया प्रयोग होता है और अगर वह लोकप्रिय होने में सफल हो जाता है तो उसके रचयिता को न केवल तात्कालिक प्रसिद्घि मिलती है बल्कि अक्सर उस क्षेत्र में उसका नाम सदा-सदा के लिए अमर हो जाता है। पत्रकारिता का क्षेत्र इसका अपवाद नहीं है। पत्रकारिता में भी जब कोई नया प्रयोग लोकप्रिय हुआ तो उसे प्रचलित करने वाले पत्रकारों को अलग पहचान मिली है।
नया प्रयोग नई बहस को जन्म देता है, नयी बात चर्चा का विषय बनती है और चर्चित हो जाने के कारण ऐसा नया प्रयोग अधिकाधिक लोगों की जानकारी में आता है और यदि वह गुणवत्ता की कसौटियों पर खरा उतरता हो तो सफल और प्रसिद्घ भी हो जाता है।
यदि आप पत्रकारिता के क्षेत्र को ही अपनी कर्मभूमि बनाना चाहते हैं तो खूब अध्ययन कीजिए। अध्ययन के बाद मनन और चिंतन कीजिए कि क्या आप किसी नयी विधा में लिख सकते हैं, क्या आप किसी विधा में कोई नया प्रयोग कर सकते हैं, क्या आप किसी नये प्रयोग में कोई और नयी बात जोड़ सकते हैं? विशद अध्ययन के बिना इन प्रश्नों का समाधान संभव नहीं है। अध्ययन, मनन और चिंतन ही वे साधन हैं जो आपको अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं। आपकी शैली अथवा विषयवस्तु की प्रस्तुति का कोई नया एवं मौलिक ढंग भी आपकी सफलता एवं प्रसिद्घि का कारण बन सकते हैं।
लेखन में वैशिष्ट्य आसानी से नहीं आता। इसके लिए अभ्यास, प्रयास और अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है। हममें से बहुतों ने पेड़ से पका फल गिरते हुए देखा होगा, पर अकेला न्यूटन ही पेड़ से सेब नीचे गिरता देखकर इतना चकित हुआ कि विश्व को गुरुत्वाकर्षण का सिद्घांत मिला। गुरुत्वाकर्षण के सिद्घांत की जानकारी होने के कारण ही कई अन्य आविष्कार संभव हुए। यदि आप भी चाहते हैं कि आप पत्रकारिता में कोई नया प्रयोग कर सकें या किसी विषय विशेष पर विशेषज्ञता हासिल कर सकें तो आपको अध्ययन, मनन और चिंतन के अलावा जागरूक और कल्पनाशील भी होना होगा। कल्पनाशक्ति से ही आप नये विचारों को जन्म दे सकते हैं।
हम पहले ही कह चुके हैं कि बीट वितरण भी एक प्रकार की विशेषज्ञता है। परंतु बीट के अंदर भी विशेषज्ञता या सुपर स्पेशलाइज़ेशन संभव है। सुपर स्पेशलाइज़ेशन का अर्थ है कि आपने अपने कर्मक्षेत्र को कुछ और संकुचित कर लिया, छोटा कर लिया और उसमें ज्य़ादा गहरे उतर गए।
आपने नेत्र विशेषज्ञ या आई-स्पेशलिस्ट सुन रखे होंगे। अगर आंखों के चिकित्सकों में सुपर स्पेशलाइज़ेशन की बात करें तो कोई डॉक्टर आंखों के पर्दे (रेटिना) का विशेषज्ञ हो सकता है, कोई भैंगेपन (स्क्विंट) का स्पेशलिस्ट हो सकता है और कोई अन्य आंखों की प्लास्टिक सर्जरी यानी, ऑक्युलोप्लास्टी का विशेषज्ञ हो सकता है। ये सब विशेषज्ञ आंखों से संबंधित रोगों के विशेषज्ञ हैं लेकिन पूरी आंख के बजाए आंख के किसी विशेष हिस्से के स्पेशलिस्ट हैं, इसलिए इन्हें सुपर स्पेशलिस्ट कहा जाता है। आप भी पत्रकारिता में किसी एक बीट का और भी ज्य़ादा विभाजन करके सुपर स्पेशलिस्ट पत्रकार बन सकते हैं।
अगर हम अपराध बीट का उदाहरण लें तो आप महिला अपराध, महिला उत्पीडऩ, महिलाओं पर होने वाले अत्याचार ही नहीं, आप महिलाओं के पक्ष में बने कानूनों का सहारा लेकर महिलाओं द्वारा अपने पतियों पर अत्याचार आदि के आंकड़े इकट्ठे कर कई अनूठे समाचार बना सकते हैं। इन आंकड़ों की सहायता से आप महिला अपराध विशेषज्ञ बन सकते हैं और कई रुचिकर और सूचनाप्रद समाचार लिख सकते हैं।
सजायाफ्ता अपराधियों का इतिहास जानकर आप उनके अपराधी बनने और अपराधी बने रहने के कारणों का विश्लेषण कर सकते हैं, भोले-भाले लोगों को अपराध क्षेत्र में धकेलने वाले लोगों का पता निकाल सकते हैं, अपराध के नये अड्डों के बारे में जानकारी इकट्ठी कर सकते हैं। इन आंकड़ों की सहायता से अपराध से संबंधित आपके समाचारों में ज्य़ादा गहराई आयेगी।
बड़े शहरों में प्राइवेट डिटेक्टिव, यानी, निजी जासूसी संस्थाएं होती हैं। उनके संचालकों से आपको यह जानकारी मिल सकती है कि उनके ग्राहक किस तरह के लोगों की जासूसी करवाते हैं। क्या पति-पत्नी एक दूसरे की जासूसी करवाते हैं, या एक बिजनेसमैन दूसरे बिजनेसमैन के रहस्य जानने को लालायित है, या एक ही बिजनेस का पार्टनर अपने दूसरे पार्टनर की जासूसी करवा रहा है। इस प्रकार मिली जानकारी न केवल रुचिकर होगी बल्कि सूचनाप्रद और ज्ञानवर्धक भी होगी।
बाहुबली राजनीतिज्ञों अथवा अपराधी राजनीतिज्ञों के आंकड़े और उनसे साक्षात्कार करके आप अलग दुनिया में पहुंच जाएंगे।
एक ही बीट की चीरफाड़ करके उसके विशेषज्ञ बनने के अलावा आप कई ऐसी बीटों पर भी काम कर सकते हैं जो ज्य़ादा सामान्य नहीं हैं। मसलन, उड्डयन (एविएशन), जंगलात, ग्राहक मामले, पर्यटन, प्रादेशिक विशिष्टताएं आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर सभी पत्रकार नहीं लिखते। आप अपने लिए अपने पसंद की ऐसी कोई अनयूज़ुअल, असामान्य बीट खुद चुन सकते हैं। उस क्षेत्र के तथ्यों का अध्ययन कीजिए, विशेषज्ञों से मिलिए, इंटरनेट पर जाइए और गूगल और विकीपीडिया की सहायता लीजिए। आपकी जानकारियों का भंडार बढ़ जाएगा और समाचार लिखने के लिए नये विषयों की कमी नहीं रहेगी।
अपने जिले के हर बस अड्डे के निर्माण के साल, उसके रखरखाव, उसमें उपलब्ध सुविधाओं का आदि के विवरण इकट्ठे करके आप नए समाचार बना सकते हैं।
यदि आप शिक्षा बीट पर हैं तो नये जमाने के कैरियर के अवसरों पर जानकारी इकट्ठी कर सकते हैं। कॉल सेंटर, बीपीओ, ऐनिमेशन, वेब डिज़ाइनिंग, वेब साल्यूशन्स आदि नये जमाने के कैरियर हैं। आपके क्षेत्र में इस तरह की शिक्षा या प्रशिक्षण देने वाले कितने संस्थान हैं, उनमें कितने विद्यार्थी हैं, पिछले सालों के विद्यार्थियों का जॉब कहां लगा, वेतन का एवरेज क्या रहा, मंदी या तेज़ी में उनकी प्लेसमेंट अथवा वेतन पर कितना और कैसा असर पड़ा, आदि तथ्यों से कई समाचार बनाए जा सकते हैं।
अखबार के पिछले छ: महीनों के अंक उठाएं, उनमें किन समस्याओं पर समाचार दिये गए हैं, उन समस्याओं पर क्या कार्यवाही हुई, कितनी समस्याओं का समाधान हो सका, कितनी समस्याएं ज्यों की त्यों बरकरार हैं, उनके निवारण न हो पाने का कारण क्या है? संबंधित पीड़ित लोगों से मिलिए, अधिकारियों से मिलिए। इस तरह की फालो-अप स्टोरी की जा सकती है।
बहुत सी ऐसी समस्याएं होती हैं जिनका सामान्य जीवन में संवाददाताओं को पता नहीं चल पाता परंतु चुनाव के दिनों में वे समस्याएं मुखरित हो जाती हैं। चुनाव के दिनों में बहुत से प्रत्याशी अपनी-अपनी किस्मत आजमा रहे होते हैं, अमूमन हर प्रमुख प्रत्याशी की कहीं न कहीं मजबूत पकड़ होती है, उस क्षेत्र के लोग अपनी समस्याएं उन प्रत्याशियों को बताते हैं, प्रत्याशी उन समस्याओं के बारे में बयान देते हैं और उन्हें हल करने का वायदा करते हैं। यदि प्रत्याशियों के प्रेस नोट पढ़े जाएं, उनसे संबंधित छपे हुए समाचार पढ़े जाएं तो आपको अपने ही शहर की कई नई समस्याओं की जानकारी हो जाएगी और आप उन पर समाचार बना सकेंगे।
आपके प्रदेश में क्षेत्र की कोई विशेषता हो, उसके कारण वहां के नागरिकों की कुछ अपने किस्म की समस्याएं हों, रीति-रिवाज़ हों तो उन को समाचारों का विषय बनाया जा सकता है। आप पहाड़ी प्रदेश के रहने वाले हैं या रेगिस्तानी प्रदेश के, आपका प्रदेश समुद्र के किनारे है या भूकंप के इलाके में है, आपके प्रदेश में गरीबी ज्यादा है या संपन्नता ज्यादा, पानी की बहुलता है या कमी है, शिक्षा का केंद्र है या इस मामले में पिछड़ा हुआ है, आदि-आदि विशेषताओं की जानकारी से समाचारों को नए एंगल मिल सकते हैं।
आप जागरूक और कल्पनाशील हों, तो नये विचारों की कमी नहीं है, सूचना के स्रोतो की कमी नहीं है। यह काम कुछ अधिक मेहनत जरूर मांगता है, पर इतनी सी एकस्ट्रा मेहनत आपको अलग किस्म का संवाददाता बना देती है, आपकी प्रसिद्धि में चार चांद लगते हैं और आपकी उन्नति की राह आसान हो जाती है।
अर्जुन शर्मा एवं पीके खुराना द्वारा संयुक्त रूप से लिखित तथा ‘इन्नोवेशन मिशनरीज़’ के पब्लिकेशन डिवीज़न द्वारा शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक "व्यावहारिक पत्रकारिता" से ...
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