Saturday, January 22, 2011

भ्रष्टाचार : कारण और निवारण

Bhrashtaachaar : Kaaran Aur Nivaaran

By :
P. K. Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

Pioneering Alternative Journalism in India

 प्रमोद कृष्ण खुराना



भ्रष्टाचार : कारण और निवारण
 पी. के. खुराना


एक सप्ताह के अंतराल में ही कई घटनाएं ऐसी घटी हैं जिन्होंने मेरा ध्यान आकृष्ट किया है। सुकना भूमि घोटाले में थल सेना के पूर्व उपप्रमुख मनोनीत लेफ्टिनेंट जनरल पीके रथ को कोर्ट मार्शल में दोषा करार दिया गया है। जूलियन असांजे ने दावा किया है कि स्विस बैंकों में जमा काले धन की संपूर्ण जानकारी उनके पास उपलब्ध है और वे इसे शीघ्र ही अपनी वेबसाइट विकीलीक्स के माध्यम से दुनिया के सामने रखेंगे। सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद केबिनेट में काले धन के बारे में चर्चा आरंभ हुई। इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री ने मंत्रीसमूह को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार पर नकेल डालने से संबंधित उपायों की चर्चा की है। प्रमुख उद्योगपति अज़ीम प्रेमजी सहित देश के 14 प्रमुख नागरिकों ने विभिन्न नेताओं को एक पत्र लिखकर देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर चिंता जताई है। यह एक अच्छी शुरुआत है, परंतु इन लोगों ने सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई है, भ्रष्टाचार से लडऩे के लिए कोई योजना नहीं सुझाई है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो भ्रष्टाचार से नाखुश नहीं है क्योंकि यह वर्ग भ्रष्टाचार से लाभान्वित होता है। इस वर्ग में राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी, सैनिक अधिकारी, न्यायिक अधिकारी और न्यायाधीश, व्यवसायी, पत्रकार, मीडिया घरानों के मालिक आदि समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हैं।

सदा से ही यह माना जाता रहा है कि शक्ति व्यक्ति को भ्रष्ट बनाती है और असीम शक्ति व्यक्ति को पूर्णत: भ्रष्ट बनाती है। यह सच भी है। जब व्यक्ति पर कोई अंकुश न हो तो उसके भ्रष्ट होने की संभावनाएं सचमुच बढ़ जाती हैं। परंतु यह भी सच है कि शक्ति का दूसरा पहलू भय है। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू मात्र हैं। थोड़ा और गहराई से देखें तो हम पायेंगे कि भय और शक्ति के साथ-साथ लालच और ईष्या भी भ्रष्टाचार के जनक हैं। आइये, ज़रा इसे समझने का प्रयत्न करें।

हाल ही में कई घोटाले चर्चा का कारण बने। राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, स्पेक्ट्रम घोटाला और आदर्श सोसायटी घोटाला इनमें प्रमुख थे। यह सभी घोटाले किसी एक व्यक्ति अथवा कुछ व्यक्तियों के पास असीम शक्ति होने के कारण घटित हो सके। कलमाड़ी और ए. राजा को लगभग निरंकुश शक्ति सौंप दी गई और दोनों ने अपनी-अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया। इसी प्रकार भविष्य की असुरक्षा का भय भी भ्रष्टाचार को जन्म देता है। जब कोई व्यक्ति थोड़े समय के लिए सत्तासीन होता है तो वस्तुत: भविष्य की अनिश्चितता और असुरक्षा के भय से ग्रस्त होता है। अनिश्चित भविष्य उसे अपनी शक्तियों के दुरुपयोग के लिए प्रेरित करता है, जिसके परिणामस्वरूप वह भ्रष्ट तरीकों से धन इकट्ठा करने लगता है। चुनावों में जनादेश यदि खंडित हो तो संयुक्त सरकारें सत्ता में आती हैं। सरकार बनाने के लिए सांसदों और विधायकों की खरीद-फरोख्त, संयुक्त सरकार के दलों को खुश रखने के लिए किए जाने वाले समझौते भी भ्रष्टाचार के जनक हैं।

दूसरी ओर, प्रशासनिक अधिकारियों को नौकरी से हटाना आसान नहीं है। उनके निलंबन और स्थानांतरण को उन्हें दंड देने का तरीका माना गया है परंतु सज़ा का यह बहुत कमजोर तरीका है। दरअसल, अक्सर निलंबन और स्थानांतरण तो पुरस्कार बन जाते हैं। यदि कोई अधिकारी लंबे समय तक निलंबित रहे तो उसे बिना काम किये और बिना किसी जवाबदेही के, घर बैठे ही, अपने वेतन का एक बड़ा भाग प्राप्त होने लगता है और वह अधिकारी अपने इस खाली समय और आधिकारिक संपर्कों का लाभ लेकर कई तरह के व्यवसाय आरंभ कर लेते हैं और दुगनी कमाई करने लगते हैं। स्थानांतरण तो सज़ा है ही नहीं। कोई अधिकारी कलकत्ता में रह कर भ्रष्टाचार करे या हैदराबाद में रह कर, इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। नये संपर्क बनाने में बस थोड़ा-सा ही समय लगता है और भ्रष्ट अधिकारी अपने पिछले अनुभव के आधार पर ज्यादा सतर्कता और ज्यादा कुशलता से फिर से भ्रष्ट रवैया अख्तियार कर लेता है।

उद्यमियों, व्यवसायियों तथा सामान्य जनता के लिए टैक्स की उच्च दरों, विभिन्न विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट) लेना, सरकारी विभागों में जटिल प्रक्रिया और कामों की सुस्त रफ्तार, अस्पष्ट कानून, न्याय की लंबी प्रक्रिया, सोसायटियों और एनजीओ संस्थाओं के लिए सब्सिडी और ग्रांट का प्रावधान आदि भ्रष्टाचार के बड़े कारण हैं।

यदि हम सचमुच भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हैं तो हमें समग्रता में सोचना होगा और सभी मोर्चों पर एक साथ काम करना होगा वरना आधा-अधूरा प्रयास सफल नहीं हो सकेगा। समस्या यह है कि सरकार की ओर भ्रष्टाचार के निवारण का कोई गंभीर और सार्थक प्रयास नहीं किया जा रहा। घडिय़ाली आंसू, दिखावे के बयान और सतही कार्यवाहियां ही देखने को मिल रही हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए सरकार एक नया लोकपाल बिल लाने का इरादा रखती है। इस प्रस्तावित कानून में दो बहुत बड़ी खामियां हैं। लोकपाल किसी भ्रष्ट व्यक्ति को सजा नहीं दे सकता, इससे भी बढक़र किसी व्यक्ति को भ्रष्ट सिद्ध करना ही बड़ा कठिन है, ऐसे में शिकायतकर्ता की शिकायत को ‘झूठ’ मानकर शिकायतकर्ता को ही सजा दी जा सकती है। इस प्रावधान के कारण सामान्य जन किसी भ्रष्ट अधिकारी अथवा राजनेता की शिकायत करने से ही डरेंगे। इस बिल से तो भ्रष्टाचार से लडऩा और भी कठिन हो जाएगा और भ्रष्टाचार को और भी बल मिलेगा।

सरकारें कभी क्रांति नहीं लातीं। क्रांति की शुरुआत सदैव जनता की ओर से हुई है। अब जनसामान्य और प्रबुद्धजनों को एकजुट होकर एक शांतिपूर्ण क्रांति की नींव रखने की आवश्यकता है। ई-गवर्नेंस, शिक्षा का प्रसार, अधिकारों के प्रति जागरूकता और भय और लालच पर नियंत्रण से भ्रष्टाचार रूपी रावण को मारा जा सकता है। यह अगर आसान नहीं है तो असंभव भी नहीं है।

एनजीओ बुलंदी ने भ्रष्टाचार से लडऩे के लिए शीघ्र ही एक समेकित योजना पेश करने का ऐलान किया है और कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने वैकल्पिक पत्रकारिता के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा किये जा रहे प्रेरणादायक समाचारों के प्रसार तथा भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध को मजबूत बनाने का काम शुरू कर दिया है। जनता के हर वर्ग को इसे समझने, दूसरों को समझाने और सबको साथ लेकर इस प्रयास को मजबूती देने का काम करना होगा तभी हम भ्रष्टाचार से लड़ पायेंगे और एक स्वस्थ, समृद्ध और विकसित समाज का निर्माण कर पायेंगे अन्यथा यह दीपक भी बुझ जाएगा और हम अंधेरे को कोसते ही रह जाएंगे। 

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