पीके खुराना
सन् 2010 भारतवर्ष ही नहीं, विश्व को झकझोर देने वाला साल था। यूपीए सरकार ने बड़ी शान से अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया था क्योंकि सरकार के मुखिया डा. मनमोहन सिंह एक काबिल और बेदाग व्यक्ति माने जाते थे। लेकिन यूपीए सरकार की यह छवि जल्दी ही धूमिल हो गयी जब एक के बाद एक घोटाला सामने आने लगा। स्पेक्ट्रम घोटाले से संबंधित नीरा राडिया के टेपों ने सरकार की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाए तथा प्रधानमंत्री को भी कटघरे में खड़ा कर दिया।
उधर अंतरराष्ट्रीय जगत में जूलियन असांजे की विकीलीक्स ने जो धमाके किये, उसने अमरीका ही नहीं, सारी दुनिया को हिला कर रख दिया। विकीलीक्स नाम की यह वेबसाइट रातों-रात प्रसिद्ध हो गई और पूरी दुनिया के मीडिया जगत ने इसमें प्रदर्शित दस्तावेजों के आधार पर गर्मागर्म बहस शुरू कर दी। विकीलीक्स पर हिट्स बढ़ते चले गए और इसके मुख्य संपादक जूलियन असांजे विभिन्न सरकारों के लिए खलनायक और आम जनता की नजरों में महानायक बन कर उभरे। आस्ट्रेलिया निवासी जूलियन असांजे एक इंटरनेट एक्टिविस्ट हैं जो इस वेबसाइट के मुख्य संपादक और प्रवक्ता भी हैं। टाइम मैगज़ीन ने उन्हें ‘रीडर्स च्वाइस फार पर्सन ऑव दि इयर-2010’ के खिताब से नवाज़ा।
विकीलीक्स की लोकप्रियता के दो मुख्य कारण हैं। पहला और आधारभूत कारण तो यह है कि विकीलीक्स ने धमाकेदार रहस्योद्घाटन किये, जो स्थापित मीडिया घराने भी नहीं कर पाये थे, जिसके कारण दुनिया भर के मीडिया में उसकी चर्चा हुई। दूसरा कारण यह है कि वेबसाइट होने के कारण विकीलीक्स दुनिया भर के लोगों के लिए उपलब्ध थी। उसे मुद्रित समाचारपत्रों की तरह किसी भौगोलिक दायरे में बंधने की विवशता नहीं थी। अखबार छपता है, अलग-अलग स्थानों पर भेजा जाता है, वहां वितरित होता है और पाठक तक पहुंचता है। वेबसाइट के साथ ऐसी सीमाएं नहीं हैं। माउस के एक क्लिक से आप दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर, दुनिया की किसी भी वेबसाइट को देख सकते हैं। विकीलीक्स की पूरी सामग्री और दस्तावेज, दुनिया भर के लोगों और मीडियाकर्मियों को उपलब्ध थे। इसके बाद तो इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया ने उन दस्तावेज़ों का हवाला देकर विकीलीक्स को दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि पारंपरिक मीडिया में विकीलीक्स के जिक्र के बाद ही विकीलीक्स की लोकप्रियता का ग्राफ चढ़ा है। तो सच यह है कि विकीलीक्स ने बढिय़ा सामग्री दी और पारंपरिक मीडिया ने विकीलीक्स के संदर्भ से उसका उपयोग किया। यदि पारंपरिक मीडिया इसे खबर के लायक न मानता तो विकीलीक्स को जो लोकप्रियता मिली है, वह कदापि न मिल पाती। लब्बोलुबाब यह कि आज भी पारंपरिक मीडिया की ताकत कम नहीं हुई है।
मैं पहले भी कई बार कह चुका हूं कि इंटरनेट और ब्लॉग के प्रादुर्भाव ने पत्रकारिता में बड़े परिवर्तन का द्वार खोला है। अभी कुछ वर्ष पूर्व तक ‘खबर’ वह होती थी जो अखबार में छप जाए या रेडियो-टीवी पर प्रसारित हो जाए। पहले इंटरनेट न्यूज़ वेबसाइट्स और फिर ब्लॉग की सुविधा के बाद तो एक क्रांति ही आ गई है। न्यूज़ वेबसाइट्स ने छपाई, ढुलाई और कागज का खर्च बचाया, तो ब्लॉग ने शेष खर्च भी समाप्त कर दिये। ब्लॉग पर तो समाचारों का प्रकाशन लगभग मुफ्त में संभव है।
ब्लॉग की क्रांति से एक और बड़ा बदलाव आया है। इंटरनेट के प्रादुर्भाव से पूर्व ‘पत्रकार’ वही था जो किसी अखबार, टीवी समाचार चैनल अथवा आकाशवाणी (रेडियो) से जुड़ा हुआ था। किसी अखबार, रेडियो या टीवी न्यूज़ चैनल से जुड़े बिना कोई व्यक्ति ‘पत्रकार’ नहीं कहला सकता था। न्यूज़ मीडिया केवल आकाशवाणी, टीवी और समाचारपत्र, इन तीन माध्यमों तक ही सीमित था, क्योंकि आपके पास समाचार हो, तो भी यदि वह प्रकाशित अथवा प्रसारित न हो पाये तो आप पत्रकार नहीं कहला सकते थे। परंतु ब्लॉग ने सभी अड़चनें समाप्त कर दी हैं। अब कोई भी व्यक्ति लगभग मुफ्त में अपना ब्लॉग बना सकता है, ब्लॉग में मनचाही सामग्री प्रकाशित कर सकता है और लोगों को ब्लॉग की जानकारी दे सकता है, अथवा सर्च इंजनों के माध्यम से लोग उस ब्लॉग की जानकारी पा सकते हैं। स्थिति यह है कि ब्लॉग यदि लोकप्रिय हो जाए तो पारंपरिक मीडिया के लोग ब्लॉग में दी गई सूचना को प्रकाशित-प्रसारित करते हैं। अब पारंपरिक मीडिया इंटरनेट के पीछे चलता है।
इंटरनेट पर अंग्रेज़ी ही नहीं, हिंदी में भी हर तरह की उपयोगी और जानकारीपूर्ण सामग्री प्रचुरता से उपलब्ध है। मैं यह मानता हूं कि पत्रकारिता से जुड़े पुराने लोग और मीडिया घराने, जो अभी ब्लॉग के बारे में नहीं जानते, आने वाले कुछ ही सालों में, या शायद उससे भी पूर्व, इंटरनेट और ब्लॉग की ताकत के आगे नतमस्तक होने को विवश होंगे। विकीलीक्स ने शायद उस युग की शुरुआत कर दी है जब आम आदमी और सामान्य पाठक भी इंटरनेट की शक्ति को समझ सकेगा।
व्यावसायिक विवशताओं के चलते स्थापित मीडिया घरानों को भी कई बार व्यावसायिक समझौते करने पड़ते हैं। सरकारों अथवा बड़े विज्ञापनदाताओं के हस्तक्षेप पर खबरें बदल देना, रोक देना या योग्य एवं निष्ठावान पत्रकारों का स्थानांतरण अथवा नौकरी से बरखास्तगी अब कोई नई बात नहीं है। वेबसाइट चलाना एक पत्रिका निकालने से भी सस्ता काम है और ब्लॉग तो लगभग मुफ्त के भाव बनता और चलता है। धन संबंधी कठिनाइयां न होने के कारण वेबसाइट मालिकों को व्यावसायिक समझौते के दबाव कम झेलने पड़ते हैं। इसलिए वेबसाइटें कदरन ज्यादा स्वतंत्र हैं।
वेबसाइटें और ब्लॉग एक और कारण से भी पारंपरिक मीडिया से भिन्न हैं। अखबारों ने लगभग हर खबर को पेज-3 स्टाइल में देना आरंभ कर दिया है। पाठकों को आकृष्ट करने के लिए अक्सर खबरों में ‘खबर’ कम और ‘मसाला’ ज्यादा होता है। वेबसाइटों और ब्लॉगों को ऐसी कोई विवशता नहीं है।
यह कहना अतिशयोक्ति ही है कि वेबसाइट और ब्लॉग अखबारों से बेहतर हैं। ब्लॉग चलाने वाले ज्यादातर लोग पेशेवर नहीं हैं और बहुत से ब्लॉग गाली-गलौच से भरे हैं। ब्लॉग पर कोई प्रभावी संपादकीय नियंतत्रण न होने से कई ब्लॉग इस काबिल बिलकुल भी नहीं हैं कि उन्हें जिक्र के काबिल भी माना जाए। इसके अलावा, भारतवर्ष में अभी इंटरनेट की उपलब्धता निराशाजनक रूप से कम है जिसके कारण वेबसाइटों और ब्लॉगों के पाठकों की संख्या अत्यंत सीमित है। पिछले कुछ सालों में देश में शिक्षा का प्रसार औरे समृद्धि के स्तर बढ़े हैं। मोबाइल फोन और इंटरनेट के संगम ने भी वेबसाइटो और ब्लॉगों के भाव बढ़ाये हैं। तकनीक में विकास के कारण अब इंटरनेट का प्रसार भी बढ़ता रहेगा और आने वाले कुछ सालों में भारतवर्ष में भी वेबसाइटों के निष्ठावान पाठकों की संख्या में आशातीत वृद्धि होगी। यह प्रसन्नता की बात है कि पारंपरिक मीडिया ने अपने आपको बदलते ज़माने के हिसाब से तैयार करना शुरू कर दिया है और अब लगभग हर अखबार और चैनल की वेबसाइट भी है तथा ज्यादातर पत्रकारों के अपने-अपने ब्लॉग भी हैं। शायद वह दिन शीघ्र ही आयेगा जब बहुत से मीडिया उत्पाद सिर्फ इंटरनेट पर ही उपलब्ध होंगे और पारंपरिक मीडिया की तरह उनके भी अपने स्वतंत्र पाठक होंगे। ***
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