Monday, April 11, 2011
Aatankvad Ka Arthshastra : आतंकवाद का अर्थशास्त्र
Aatankvad Ka Arthshastra : आतंकवाद का अर्थशास्त्र
By :
P. K. Khurana
(Pramod Krishna Khurana)
प्रमोद कृष्ण खुराना
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आतंकवाद का अर्थशास्त्र
पी. के. खुराना
भारतवर्ष के पूर्वोत्तर राज्यों में असम सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण राज्य है। असम अपने चाय बागानों, कामाख्या मंदिर के साथ-साथ शेष विश्व में आतंकवाद के लिए भी जाना जाता है। हाल ही में असम में चुनाव संपन्न हुए। चार अप्रैल और ग्यारह अप्रैल को दो चरणों में मतदान हुआ। मतदान का प्रतिशत बहुत अच्छा था, मतदान शांतिपूर्ण रहा और देश भर का मीडिया बता रहा है कि यह लोकतंत्र की जीत है। तेरह मई को चुनाव परिणाम आ जाएंगे और फिर कोई न कोई सरकार, संभवत: कांग्रेस की ही सरकार, असम का प्रशासन संभाल लेगी।
चुनाव की अवधि में मैं लगभग 25 दिन के असम प्रवास पर था और यहां कई वरिष्ठ पत्रकारों से मिलने का अवसर मिला। असम आने से पहले मैं आतंकवाद के अर्थशास्त्र को नहीं जानता था, पर यहां से प्रकाशित प्रसिद्ध हिंदी समाचारपत्र दैनिक सेंटिनल के संपादक श्री दिनकर कुमार जी से मुलाकात ने मेरी आंखें खोलीं और मेरे सामने आतंकवाद का एक नया पहलू सामने आया, जो मेरी कल्पनाशक्ति से बाहर था।
यह सही है कि हमारे कई पड़ोसी देश आतंकवाद को जिंदा रखने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन पूरा सच यह है कि भारतीय राजनीतिज्ञ और प्रशासनिक अधिकारी आतंकवाद की रोकथाम नहीं चाहते हैं, आतंकवाद जारी रहने में उनका बहुत बड़ा स्वार्थ निहित है, और वह स्वार्थ है अरबों-खरबों की धनराशि जो यह सब लोग आपस में मिल बांट कर खाते हैं।
आतंक आज भी असम की एक सच्चाई है और आतंकवादियों की ओर से असम बंद का फरमान जारी हो तो पूरा बाजार बंद रहता है। उसमें कोई एक्सेप्शन नहीं है। दूकानदार कांग्रेसी हो, भाजपाई हो या किसी और दल का समर्थक हो, दूकान बंद रखता है। यहां तक कि मंत्रियों और विधायकों के व्यापारिक संस्थान भी बंद रहते हैं।
असम में बहुत गरीबी है, दबे-कुचले लोग आतंकवादी बनकर शक्तिशाली महसूस करते हैं, पर साथ में इसमें धन का भी रोल है। आतंकवादी यदि सरेंडर करे तो उसके पुनर्वास के लिए बैंक से कर्जा, ग्रांट आदि की सरकारी सहायता मिलती है, जो अन्यथा नहीं मिलती। बहुत से लोग इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आतंकवादी बनते हैं। आतंकवादी रहते हुए आतंकवादियों को विदेशों से जो पैसा मिलता है, उन्हें उसका हिसाब-किताब देने की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार जो लोग आतंकवाद का साथ देते हैं वे दोनों तरह से धनलाभ से आकर्षित होते हैं।
ब्रह्मपुत्र यहां की सबसे बड़ी नदी है। असम में ब्रह्मपुत्र की महत्ता को इसी से समझा जा सकता है कि इसे नदी नहीं नद (यानी, बड़ी नदी) माना जाता है और पुल्लिंग (यानी, पुरुष वाचक) संबोधन दिया जाता है। ब्रह्मपुत्र के आसपास का बहुत का क्षेत्र हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाता है और बाढ़ खत्म होने पर खाली हुई जमीन स्थाई निवास के काम नहीं आती, लेकिन बांग्लादेश से आये लोगों को आतंकवाद से जुड़े लोग ब्रह्मपुत्र के आसपास बसा देते हैं और उनसे अफीम की खेती करवाते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अफीम की बहुत कीमत है जो आतंकवादियों के लिए आय और हथियार पाने का बहुत बड़ा ज़रिया है। असम में बंाग्लादेश से आने वाले लोगों को इसलिए नहीं रोका जाता क्योंकि वे कांग्रेस के लिए बड़ा वोट बैंक हैं। आतंकवादी और सरकार एक दूसरे के सहयोगी नहीं हैं, पर दोनों एक दूसरे को पूरी तरह से खत्म भी नहीं करना चाहते क्योंकि एक के अस्तित्व में ही दूसरे की कमाई है। इस प्रकार बांग्लादेशी घुसपैठिये, सरकार और आतंकवादियों के इस अव्यक्त गठजोड़ के कारण भारत में आ बसते हैं और यहीं बसे रह जाते हैं।
आतंकवाद से जुड़ा एक और पहलू भी है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि असम में राजनीति से जुड़े लोगों में से बहुत से ऐसे हैं जिनकी संपत्ति में पिछले पांच वर्षों में ही 2000 गुणा वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार के अलावा दुनिया का कोई ऐसा व्यवसाय नहीं है जो पांच वर्षों में आपकी संपत्ति में 2000 गुणा बढ़ा सके। एक और बड़ा और महत्वपूर्ण सच यह है कि आतंकवाद की समाप्ति के लिए सहायता के तौर पर राज्य को केंद्र से खरबों रुपये मिलते हैं। मगर यह सहायता राजनीतिज्ञों और अधिकारियों तक सीमित रह जाती है। हाल ही में एक भयावह मामला सामने आया कि केंद्र से सहायता के रूप में मिली धनराशि पात्र लोगों में बांटने के बजाए मंत्रियों व अधिकारियों ने दबा ली। एक स्वयंसेवी संगठन ने जब इसका पर्दाफाश किया तो पता चला कि एक मंत्री ने वह पैसा छुपाने के लिए अपने घर में दोहरी पर्तों वाली दीवारें बनवा कर उनमें छुपा रखा था। दर्जनों अधिकारी बर्खास्त हुए और एक ने तो आत्महत्या तक कर ली। लेकिन उसके बाद आगे कुछ नहीं हुआ। आतंकवाद के जारी रहने का यह सबसे बड़ा कारण है। आतंकवाद के अर्थशास्त्र का यह सबसे घिनौना पहलू है।
अन्ना हज़ारे के आंदोलन से भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम शुरू हुई है। सारे शोर-शराबे के बावजूद अभी यह मुहिम शैशवावस्था में है और अभी एक लंबी लड़ाई बाकी है। उससे भी ज्य़ादा जरूरी है भ्रष्टाचार के विभिन्न स्वरूपों को पहचानना और फिर उसके निदान के लिए आवश्यक और प्रभावी उपाय करना। भ्रष्टाचार के कारण कुछ लोग आवश्यकता से अधिक अमीर हो रहे हैं जबकि एक बहुत बड़ी जनसंख्या दो जून की रोज़ी-रोटी की मोहताजी से उबर पाने के लिए छटपटा रही है। गरीब और दबे-कुचले लोग आतंकवाद की शरण में जाने को विवश हो रहे हैं। इस तथ्य से अनजान आम आदमी एक तरफ सरकारी भ्रष्टाचार की मार सह रहा है तो दूसरी ओर आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो रहा है। आतंकवाद से परेशानी सिर्फ आम जनता को है, और आतंकवाद के जारी रहने का एक बड़ा कारण हमारे जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार है। इस सच्चाई को समझे बिना आतंकवाद से नहीं निपटा जा सकता।
यदि हम आतंकवाद से निपटना चाहते हैं तो हमें भ्रष्टाचार से भी साथ ही निपटना होगा। अन्ना हजारे के माध्यम से इस लड़ाई की शुरुआत तो हो चुकी है, पर लड़ाई को जारी रखना होगा। हमें याद रखना चाहिए कि सरकारें कभी क्रांति नहीं लातीं। क्रांति की शुरुआत सदैव जनता की ओर से हुई है। अब जनसामान्य और प्रबुद्धजनों को एकजुट होकर एक शांतिपूर्ण क्रांति की नींव रखने की आवश्यकता है। ई-गवर्नेंस, शिक्षा का प्रसार, अधिकारों के प्रति जागरूकता और भय और लालच पर नियंत्रण से भ्रष्टाचार रूपी रावण को मारा जा सकता है। जनता के हर वर्ग को इसे समझने, दूसरों को समझाने और सबको साथ लेकर इस प्रयास को मजबूती देने का काम करना होगा तभी हम भ्रष्टाचार से लड़ पायेंगे और एक स्वस्थ, समृद्ध और विकसित समाज का निर्माण कर पायेंगे अन्यथा यह दीपक भी बुझ जाएगा और हम अंधेरे को कोसते ही रह जाएंगे।यह अगर आसान नहीं है तो असंभव भी नहीं है।
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