Sunday, May 1, 2011
Desh Ke Vikas Ki Avashyak Shart : देश के विकास की आवश्यक शर्त
Desh Ke Vikas Ki Avashyak Shart : देश के विकास की आवश्यक शर्त
By :
P. K. Khurana
(Pramod Krishna Khurana)
प्रमोद कृष्ण खुराना
Pioneering Alternative Journalism in India
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देश के विकास की आवश्यक शर्त
पी. के. खुराना
हमारा देश इस समय बहुत सी समस्याओं से जूझ रहा है, लेकिन भ्रष्टाचार, अशिक्षा, गरीबी और बेरोज़गारी इनमें सबसे प्रमुख हैं। हमें याद रखना चाहिए कि अपने आसपास की कमियों को स्वीकार करने की हमारी क्षमता और इच्छा उन्हें मिटाने की दिशा में पहला कदम होगा। यह जताना मानो वे कमियां हैं ही नहीं और बस यह कहते रहना काफी नहीं है कि हम दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश हैं। यदि हम राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं तो हमें चार मूलभूत लक्ष्यों को पाने की दिशा में काम करना होगा। वे चार लक्ष्य, चार आज़ादियां हैं -- भाषण और अभिव्यक्ति की आज़ादी, धर्म की आज़ादी, अभावों से आज़ादी और भय से आज़ादी।
हमारे देश में विचारों को क्रियान्वित किये बिना उन पर बस चर्चा ही करते रहने का चलन रहा है। ऐसे में बाबा अन्न हज़ारे ने एक नया उदाहरण पेश किया है -- बातों के बजाए काम का, एक्शन का। भ्रष्टाचार निवारण के मामले में बाबा अन्ना हजारे ने अपने संघर्ष से एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की है। इसका अंतिम परिणाम जो भी हो, यह कम से कम एक अच्छी शुरुआत अवश्य है।
यह एक स्थापित तथ्य है कि गरीबी, बेरोज़गारी और अशिक्षा आपस में जुड़ी हुई समस्याएं हैं और इनका टुकड़ों में अथवा अलग-अलग हल संभव नहीं है। जब व्यक्ति गरीब होता है तो मजबूर होता है और आर्थिक मजबूती के अभाव में उसकी स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता। गरीबी से लड़ते-लड़ते व्यक्ति इतना पस्त हो जाता है कि वह गरीबी की मानसिकता का आदी हो जाता है और गरीबी से हार मान लेता है।
यह विडंबना ही है कि दुनिया भर में भारत में आरक्षण का प्रतिशत सर्वोच्च है और हमारा देश एकमात्र ऐसा देश बन गया है जहां लोग पिछड़ा कहलाने के लिए आंदोलन करते हैं। परिणामस्वरूप, आज लोग मेहनत, ज्ञान और ईमानदारी की तुलना में पिछड़ेपन को उन्नति का साधन मानते हैं। सब जानते हैं कि लड़ाई में गिरना हार नहीं है, गिर कर न उठना हार है। गरीबी की मानसिकता उस हताशा का प्रतीक है जब व्यक्ति गिर जाने पर दोबारा उठने की हिम्मत नहीं करता। गरीबी दूर करना हमारी एक बड़ी चुनौती है, पर गरीबी की मानसिकता उससे भी बड़ी समस्या है। गरीबी की मानसिकता के दुष्प्रभावों को समझे बिना गरीबी के विरुद्ध लड़ाई संभव ही नहीं है। हमें यह याद रखना चाहिए कि बदलते जमाने की अर्थव्यवस्था में समस्याएं भी नई हैं और उनके समाधान भी पुराने तरीकों से संभव नहीं है।
उदारवाद से पूर्व के समय में विदेशी मुद्रा का भंडार समाप्ति के कगार पर था और देश की अर्थव्यवस्था इस हद तक कमजोर हो गई थी कि हमें अपना सोना गिरवी रखना पड़ा था। उदारवाद के बाद देश में नए उद्योग लगे, नये काम धंधे शुरू हुए, सर्विस सेक्टर मजबूत हुआ, देश की अर्थव्यवस्था सुधरनी शुरू हुई। बड़े उद्योगों ने रोजगार के नये अवसर पैदा किये और देश में मध्य वर्ग की संपन्नता का नया दौर चला।
कई लोग भिन्न-भिन्न कारणों से औद्योगीकरण के खिलाफ हैं। उनमें से कई कारण वैध हैं, लेकिन बहुत बार या तो किसी निहित स्वार्थ के कारण अथवा अज्ञान और गरीबी की मानसिकता के कारण भी लोग बड़े उद्योगों का विरोध करते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि सरकारी नौकरियों का जमाना खत्म हो गया है, कृषि लाभदायक व्यवसाय नहीं रह गया है और विकास के लिए और रोज़गार के नये अवसर पैदा करने के लिए आपको बड़े उद्योगों का सहारा लेना ही पड़ेगा। देश में गरीबी की समस्या को हल करने का एकमात्र तरीका रोज़गार के नये अवसरों को पैदा करना है। इसके लिए उद्यमों की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में पहले से ही बहुत कम पगार पर बहुत से लोग लगे हुए हैं, इस लिए आपको मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्रों में रोज़गार पैदा करना होगा। हमारी सरकारों ने एक ऐसा आर्थिक माडल अपनाया है जिसमें योग्यता और जवाबदेही की परवाह किए बिना रोजगार पैदा करने और उन्हें बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार पर रही है। हम जानते हैं कि सरकार इसमें बुरी तरह असफल रही है।
एक और महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है। यदि आप विश्व की सौ सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों की सूची बनाएं तो पहले 63 स्थानों पर भिन्न-भिन्न देशों का नाम आता है और शेष 37 स्थानों पर आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट तथा पेप्सिको जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं। विश्व के शेष देश भी इन कंपनियों से बहुत छोटे हैं। इनमें से बहुत सी कंपनियां शोध और समाजसेवा पर नियमित रूप से बड़े खर्च करती हैं। इन कंपनियों के सहयोग से बहुत से क्रांतिकारी आविष्कार हुए हैं जो शायद अन्यथा संभव ही न हुए होते। अत: औद्योगीकरण का विरोध करने के बजाए हमें ऐसे नियम बनाने होंगे कि बड़ी कंपनियां हमारे समाज के लिए ज्यादा लाभदायक साबित हों तथा उनके कारण आने वाली समृद्धि सिर्फ एक छोटे से तबके तक ही सीमित न रह जाए, बल्कि वह समाज के सबसे नीचे के स्तर तक भी प्रवाहित हो।
देश का समग्र विकास तभी संभव है जब देश के सभी नागरिक खुशहाल हों। खुशहाली यदि एक छोटे से वर्ग तक सीमित रह जाए तो वह असली विकास नहीं है। अभी भी विकास का प्रवाह सब ओर नहीं हो रहा है तो इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि वंचितों और गरीबों को आरक्षण, स्कूल-कॉलेजों में फीस में माफी, नौकरी में प्राथमिकता जैसे लॉलीपॉप तो दिये जाते हैं पर उनकी गरीबी दूर करने के लिए उन्हें मानसिक धरातल पर शिक्षित करने के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है। किसी भूखे को भोजन खिलाना ही काफी नहीं है। उसे भोजन कमाने के काबिल बनाना ज्यादा जरूरी है, और अब उससे भी एक कदम आगे बढ़कर उसे इस काबिल बनाना ज्यादा जरूरी है कि वह न केवल स्वयं के लिए भोजन कमा सके बल्कि अपने आसपास के समुदाय को भी भोजन कमाने के काबिल बना सके। यही कारण है कि मैं ज़ोर देकर कहना चाहता हूं कि गरीबी से लड़ाई से पहले गरीबी की मानसिकता से लडऩा आवश्यक है ताकि देश के विकास की राह में रोड़े अटकाने वाली बाधाओं को दूर किया जाए और विकास की राह पर तेज़ी से बढ़ा जाए।
“How to Eradicate Poverty”, Mentality of the Poor, Poverty Mindset, PK Khurana, Bulandi, NGO Bulandi, Pramod Krishna Khurana, Industrialisation for Growth, Growth Parameters, Parameters of Growth and Development.
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