प्रमोद कृष्ण खुराना
Pramod Krishna Khurana (popularly known as P.K.Khurana)
कहते हैं कि डर और आशा का मिश्रण बड़ा खतरनाक और कारगर होता है। यह बड़ा विरोधाभासी कथ्य है और इसे ध्यान से समझने की आवश्यकता है।
आशा के होते हुए भी अगर डर बना रहे तो आदमी आधे-अधूरे मन से कार्य करता है, आधे-अधूरे प्रयास करता है और अपनी असफलता की स्वयं ही गारंटी कर लेता है। डर हमारे आत्मविश्वास को हर लेता है और हम नकारा हो कर रह जाते हैं। डर और निराशा के कारण योग्य से योग्य व्यक्ति भी अपाहिजों का-सा जीवन जीने को विवश हो जाता है। यदि हम सिक्के के दूसरे पहलू पर दृष्टिपात करें तो हम पायेंगे कि डर के बावजूद हम आशा का दामन थामे रहें तो डर जाता रहेगा अथवा कम हो जाएगा। आशा का दामन थामे रहने से आत्मविश्वास डिगेगा नहीं और हम पूरे मनोयोग से कार्य करेंगे तथा अपनी सफलता सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयत्न करेंगे।
परंतु हमारा जीवन सिर्फ सीधी-सीधी रेखा नहीं है। इसमें कुछ भी सिर्फ श्वेत और श्याम नहीं होता। अधिकतर स्थितियों में श्वेत और श्याम के अतिरिक्त भी अंधकार और प्रकाश के सम्मिलन वाले कई भूरे रंग न$जर आयेंगे। हर बात सिर्फ सच और झूठ या अच्छे और बुरे में ही नहीं बंटी होती। इनमें कई-कई चीजों का मिश्रण होता है, जिसके कारण जीवन की स्थितियों का सरल विश्लेषण संभव नहीं हो पाता। ऐसी स्थितियों के मुकाबिल होने पर ही हमारी बुद्घि और विवेक की परीक्षा होती है।
हम पहले ही कह चुके हैं कि डर और आशा का मिश्रण बड़ा ‘खतरनाक’ और ‘कारगर’ होता है। इसका सीधा-सा अर्थ है कि यदि डर की मात्रा अधिक होगी तो हमारी असफलता की आशंका बढ़ जाएगी परंतु यदि आशा की मात्रा अधिक होगी तो हमारी सफलता के अवसर बढ़ जाएंगे। आइये, इसे थोड़ा और समझने का प्रयास करें।
आशा के साथ थोड़ा डर मिला होने पर हम चौकन्ने रहते हैं और अति-विश्वास के कारण की जाने वाली गलतियों से बचे रहते हैं। यदि हम विधायी दृष्टिकोण रखें तो आशा में भय का मिश्रण वस्तुत: हमारे लाभ में जा सकता है। भय और आशा का यह मिश्रण बड़ा कारगर साबित हो सकता है बशर्ते कि हम भयाक्रांत ही न हो जाएं। भय हमें सावधान करता है, भय हमें अनावश्यक जल्दी में गलत निर्णय लेने से बचाता है, भय हमें अपनी खूबियों और खामियों तथा अपने साधनों और स्रोतों का सांगोपांग विश्लेषण करने को बाध्य करता है। आम स्थितियों में हम जिन बातों को न$जरअंदा$ज कर जाते, भय हमें उनसे खबरदार रहने की अक्ल देता है। भय एक नकारात्मक घटक है परंतु बुद्घिमान और विवेकी लोगों के जीवन में भय बड़े काम की ची$ज है। भय और आशा के मिश्रण में भय की इस भूमिका को समझने की आवश्यकता है। यदि हम भय की इन खूबियों को समझ लें तो हम भय से पार पाकर भय का लाभ ले सकेंगे। तब हमारा मन आत्मविश्वास से भर जाएगा और जी-जान से अपनी सफलता के लिए कार्य करेंगे।
जीवन में कभी भी किसी भी स्थिति में भय का भान होने पर हमें यह सोचना चाहिए कि हम क्यों भयभीत हैं। भय के कारणों का विश्लेषण करने से हमें मालूम पड़ जाता है कि क्या करना हमारे लिए गलत साबित हो सकता है और क्या उपाय करके हम भय के कारकों से दूर रह सकते हैं। इस प्रकार भय का विश्लेषण करने से समस्या खुद-ब-खुद हल हो जाती है और भय का हल्का-सा भान हमारे लिए लाभदायक सिद्घ होता है।
इस विवेचन की गहराई में जाएं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि मूल अंतर आशा और भय का नहीं बल्कि दोनों को लेकर हमारे दृष्टिकोण का है। यदि हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक हो, विधायी हो तो हम भय से भी लाभान्वित होंगे और यदि हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक हो तो आशा के बावजूद हम भयाक्रांत रह कर स्वयं ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेंगे। यह जान लेना बहुत आवश्यक है कि सफल और असफल व्यक्तियों के जीवन की स्थितियां अलग-अलग नहीं होतीं, बस स्थितियों को देखने और उन्हें परिभाषित करने की दृष्टि में ही अंतर होता है। स्थितियां नहीं, बल्कि दृष्टिकोण का यह अंतर ही हमें सफल अथवा असफल बनाता है।
इसीलिए कहा जाता है कि हमारा भाग्य हमारे अपने हाथ में है और इसीलिए यह भी कहा जाता है कि हम अपने कर्मों से ही अपना भाग्य बनाते अथवा बिगाड़ते हैं। स्थितियों से असंतुष्ट रहकर कुढ़ते रहना अथवा स्थितियों से असंतुष्ट होने पर उन्हें बदलने की जुगत में जुट जाना, यह हमारे न$जरिये पर निर्भर करता है, इसलिए खुश रहना और उदास रहना भी हमारे अपने हाथ में है। आकाश में अथवा कहीं और कोई स्वर्ग या नरक नहीं हैं। स्वर्ग या नरक अगर कहीं हैं तो इसी धरती पर हैं और हमारे अपने बनाए हुए हैं। इस तथ्य की गहराई में हम जितना उतर सकेंगे अपने जीवन में हम उतने ही सफल अथवा असफल तथा प्रसन्न अथवा दुखी होंगे। यही सच है, यही एकमात्र सच है ! ***
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