प्रमोद कृष्ण खुराना
कहा जाता है कि ज्ञान शक्ति है, पर क्या आप जानते हैं कि यह एक अधूरा सच है। ज्ञान स्वयं में शक्ति नहीं है। ज्ञान, शक्ति में तभी परिवर्तित होता है जब इसे प्रयोग में लाया जाए। यही नहीं, जब इसे रचनात्मक ढंग से काम में लाया जाए तो यह एक बड़ी शक्ति बन जाता है। ज्ञान के रचनात्मक प्रयोग में कल्पनाशक्ति की आवश्यकता होती है। इसीलिए मनोवैज्ञानिक आरंभ से ही कल्पनाशक्ति को मानव समाज का सर्वोत्तम उपहार मानते रहे हैं। रचनात्मक कल्पनाशक्ति का विकास उसी तरह संभव है जैसे हम तैरना, पढऩा या चित्र बनाना सीखते हैं। वस्तुत: लगभग हर कला को वैज्ञानिक विधि से सीखा जा सकता है। कला और विज्ञान के इस संगम ने ही मानव की अपरिमित ऊँचाइयों तक पहुंचाया है।
मुखर व सुषुप्त कल्पना
हमारी कल्पनाशक्ति उतनी ही पुरानी है जितनी हमारी स्मरणशक्ति। कल्पनाशक्ति के विकास के लिए बुद्घिमत्ता, ज्ञान अथवा अनुभव की उतनी आवश्यकता नहीं होती जितनी कि प्रयास, प्रेरक स्थितियों अथवा हमारी आवश्यकता की होती है। जान पर आ बनी हो तो हमारी कल्पनाशक्ति ज्यादा मुखर हो जाती है। एक मनोवैज्ञानिक ने इसे एक बार सिद्घ कर दिखाया। अमेरिका की एक विश्वप्रसिद्घ कंपनी के विशाल भवन की बारहवीं मंजिल पर स्थित एक कमरे में बैठे कर्मचारियों व अधिकारियों से उन्होंने एक प्रश्न किया, ‘यदि अभी भूकंप आ जाए और यह विशाल भवन दो मिनट में गिरने वाला हो तो आप क्या करेंगे? ’अधिकांश लोग कोई सार्थक हल सुझा पाने में असमर्थ रहे। इसके बाद वे साथ के कमरे में गये और लोगों से इधर-उधर की बातें करने लगे। इतने में उनका एक सहायक बदहवास हालत में वहां भागता आया और बोला कि भूकंप आ गया है, सारा भवन गिर रहा है। उनके सहायक का अभिनय इतना शानदार था कि कमरे में मौजूद लोगों को सहज ही उसकी बात पर विश्वास हो गया। दो मिनट के भीतर कमरे में मौजूद सभी लोग भवन से बाहर थे। कोई पाइप से लटका या खिडक़ी से कूदा, पर सभी भवन से बाहर आ गये ! जीवन को खतरे में जानकर कल्पनाशक्ति मुखर हुई और जवान, बूढ़ा, औरत, मर्द, लड़कियां, स्वस्थ व शरीर से कमजोर, हर तरह का व्यक्ति, जान बचाने की जुगत में जुट गया और सफल भी हुआ।
इस प्रयोग से कई बातें एक साथ सिद्घ हो गयीं। पहली तो यह कि मुखर कल्पनाशक्ति कई तरह के चमत्कार कर पाने में समर्थ है। दूसरे, हर व्यक्ति कल्पनाशील हो सकता है, बल्कि है ही। तीसरे, कल्पनाशक्ति की मुखरता के लिए प्रयास की सघनता (intensity of effort) तथा संचालक शक्ति (driving power) सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। कल्पनाशक्ति के प्रयोग में उम्र कोई बाधा नहीं है। बाद में अलग-अलग प्रयोगों से यह भी सिद्घ हो गया कि उम्र के साथ कल्पनाशक्ति का क्षरण नहीं होता, बल्कि कल्पनाशक्ति का प्रयोग करते रहने वाले व्यक्ति की कल्पना बढ़ती उम्र के साथ अधिक मुखर और परिपक्व हो जाती है। वस्तुत: बड़ी उम्र के लोगों में रचनात्मक कल्पनाशक्ति के अभाव के जो कारण पाये गये वे परंपरागत विश्वास के एकदम विपरीत निकले। हमारी शिक्षा पद्घति में केवल स्मरणशक्ति के प्रयोग पर अनावश्यक बल, और जीवन के मशीनी अंदा$ज ने कल्पनाशक्ति के विकास पर कुठाराघात किया है। विभिन्न परीक्षाओं एवं प्रतियोगिताओं में कल्पनाशक्ति के बजाए ज्ञान और स्मरणशक्ति का महत्व बढ़ जाने के कारण कल्पनाशक्ति के विकास का कोई प्रयास आरंभ ही नहीं हुआ। जहां कल्पनाशक्ति घटी वहां प्रयास पहले समाप्त हुआ, कल्पनाशक्ति का क्षरण बाद में आरंभ हुआ।
प्रयोगों से यह भी सिद्घ हुआ है कि बच्चों की कल्पनाशक्ति बहुत मुखरित होती है पर स्कूली जीवन में उनकी कल्पनाशक्ति की लगभग हत्या ही कर दी जाती है। हमारी शिक्षा पद्घति ही नहीं, समूची जीवन पद्घति ही बच्चों की मुखर जिज्ञासा और कल्पनाशक्ति का विनाश करती चलती है और उन्हें मशीनी जीवन की आदी बना देती है। मां-बाप भी बच्चे को परीक्षा में सफल देखने के उत्साह में उसे संस्कारित करने के लिए ‘यह मत करो’, ‘शोर मत मचाओ’, ‘सीधे खड़े रहो’, आदि इतनी वंचनाएं लाद देते हैं कि बच्चे का प्राकृतिक विकास बाधित हो जाता है।
कल्पनाशक्ति बनाम तर्कशक्ति
हमारा विचारशील मस्तिष्क दो भागों में बंटा हुआ है। इसका पहला भाग तर्कशील है जो विश्लेषण और तुलना के बाद दो या अधिक विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठï का चुनाव करता है और दूसरा भाग रचनात्मक है जो मानसिक चित्र गढ़ता है, अनुमान लगाता है और नये विचारों का सृजन करता है। तर्कशील मस्तिष्क और रचनात्मक मस्तिष्क कई मामलों में एक-सा कार्य करते हैं। दोनों ही विश्लेषण और संश्लेषण (जोडऩा, मिलाना) का कार्य करते हैं। तर्कशील मस्तिष्क तथ्यों का क्रमवार विभाजन करता है, उन्हें परखता है, तुलना करता है, कुछ को अस्वीकार कर देता है और कुछ को अपना लेता है और तब उन्हें सिलसिलेवार करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है। रचनात्मक मस्तिष्क भी यही सब करता है। फर्क सिर्फ इतना है कि उसका अंतिम कार्य निर्णय देना नहीं बल्कि किसी नये विचार को जन्म देने का है। वह फैसला नहीं करता, बल्कि कुछ नये विचार सुझाता है। तर्कशील मस्तिष्क और रचनात्मक मस्तिष्क में एक और बड़ा अंतर यह है कि तर्कशील मस्तिष्क सिर्फ उपलब्ध तथ्यों का विश्लेषण करता है जबकि रचनात्मक मस्तिष्क कल्पनाशक्ति के सहारे अज्ञात में प्रवेश करने का प्रयत्न करता है तथा दो और दो चार के गणितीय कार्य से भी आगे जाकर कुछ नया कर दिखाता है।
यह समझना आवश्यक है कि कल्पनाशक्ति और तर्कशक्ति एक-दूसरे के पूरक भी हैं और शत्रु भी, अत: यदि इनमें सही संतुलन न रखा जाए तो दोनों का ही नुकसान होता है। तर्कशील मस्तिष्क का कार्य मुख्यत: ऋणात्मक है। ‘अरे, इसमें तो यह दोष है’, ‘नहीं, नहीं, यह नहीं चलेगा’,‘ऐसा भी कहीं होता है? ’आदि-आदि तर्कशील मस्तिष्क की उपज हैं, जबकि रचनात्मक मस्तिष्क को मुख्यत: धनात्मक या विधायी कार्य करने होते हैं। उसे आशावादी और उत्साहपूर्ण होना होता है, तभी वह नये विचारों का सृजन कर पाता है। रचनात्मक मस्तिष्क बुरी से बुरी स्थिति में भी आशा की किरणें खोजता है जबकि तर्कशील मस्तिष्क हर योजना में कमियां ढूंढ़ता है।
सैकड़ों-हजारों प्रयोगों की असफलता के बाद भी एडिसन का जो बल्ब बना वह एक अधकचरा आविष्कार ही था, तो भी यह एडिसन के आशावादी दृष्टिïकोण का ही परिणाम था कि एक सफल और उन्नत बल्ब का विकास हो सका। सारी प्रारंभिक असफलताओं के बावजूद एडिसन ने प्रयत्न नहीं छोड़ा। बाद में भी वे अपने प्रथम आविष्कार के सुधार में लगे रहे। इसी आशावादिता ने संसार को बड़े-बड़े आविष्कारों से परिचित करवाया है। कल्पनाशक्ति की उड़ान ही हमें स्वप्न की दुनिया को जीवन में उतारने को प्रेरित करती है। इनमें से कई विचार तो प्रथम दृष्टिï में ही असंभव लगते हैं, लेकिन बाद में उन्हें भी वास्तविकता में बदलना संभव हो जाता है। इस प्रकार जो कभी कल्पना था, बाद में वह वास्तविकता बन सकती है।
यह देखना आवश्यक है कि हमारा तर्कशील मस्तिष्क हमारे रचनात्मक मस्तिष्क में उपजने वाले विचारों की भ्रूण हत्या न कर दे। यह एक अकाट्य सत्य है कि लगभग हर नये विचार को तुरंत तर्कसंगत ढंग से गलत सिद्घ किया जा सकता है। कई बार तो ये तर्क इतने पुख्ता लगते हैं कि व्यक्ति अपनी योजना को सिरे से ही त्याग देता है, अत: यह आवश्यक है कि विचारों को तुरंत ठीक और गलत या संभव और असंभव की कसौटी पर परखना आरंभ कर देने से पहले उसे कुछ और परिपक्व हो लेने देना चाहिए।
कल्पनाशक्ति बनाम स्मरणशक्ति
स्मरणशक्ति एक मशीनी अंदाज का काम है। मशीन निश्चित ढंग से कार्य करती रहती है। स्मरणशक्ति भी वही करती है। एक विषय को बार-बार दोहराते रहने से वह हमें याद हो जाता है। इसी प्रकार एक कार्य को बार-बार दोहराने से हमें उसका अभ्यास हो जाता है। उसमें सृजनात्मक कुछ भी नहीं है। कल्पनाशक्ति किसी विषय को दोहराते समय भी उसे दोहराने या याद करने के बेहतर और आसान तरीके खोज निकालती है। क्विज कार्यक्रमों में भाग लेने वाले अथवा परीक्षाओं में बढिय़ा अंक लेने वाले बच्चों की स्मरणशक्ति तो बेहतर हो सकती है, पर यह आवश्यक नहीं कि उनकी कल्पनाशक्ति भी वैसी ही विकसित हो। कक्षा में कमजोर रहने वाले विद्यार्थी भी कल्पनाशील हो सकते हैं। वस्तुत: किसी विषय में कमजोर होने के कई कारण हो सकते हैं। भाषा पर अधूरी पकड़, विषय विशेष में रुचि का अभाव, अध्यापक का कठोर व्यवहार, मां-बाप की लापरवाही अथवा खुद बच्चे की लापरवाही आदि इसके कारण हो सकते हैं। इनका कल्पनाशक्ति के विकास से कोई लेना-देना नहीं है।
कल्पनाशक्ति के उपयोग के लाभ
कल्पनाशक्ति का प्रयोग एक रचनात्मक क्रिया है और कल्पनाशक्ति एक रचनात्मक, सृजनात्मक शक्ति है। कल्पनाशक्ति का प्रयोग वैज्ञानिक कार्यों व सैन्य कार्यों सहित जीवन के हर क्षेत्र में बखूबी हो सकता है, होता ही है। घर या दफ्तर की छोटी-छोटी समस्याओं से लेकर देश अथवा विश्व की बड़ी से बड़ी समस्या तक के हल में कल्पनाशक्ति का प्रयोग वांछित है। प्रथम विश्व युद्घ के समय टॉमस एडिसन को उनके देश की सरकार ने किसानों के अनाज की बरबादी बचाने के तरीके सोचने के लिए कहा और एडिसन के ही सुझावों का फल था कि सदाबहार भंडारण-गृहों का विचार कार्यान्वित हो सका। इसी प्रकार यदि रचनात्मक लोगों को देश की समस्याओं का हल खोजने का कार्य सौंपा जाए तो देश की अधिकांश समस्याओं का सार्थक समाधान संभव है। कल्पनाशक्ति की यही वह बड़ी विशेषता है जिसका अब तक उपयोग नहीं किया गया है।
किसी भी समस्या से दो-चार होने पर अपने आसपास नजर दौड़ाइए। यह जानने का प्रयत्न कीजिए कि कितने लोगों को वैसी या उस जैसी समस्या से जूझना पड़ा, उन्होंने समस्या का समाधान कैसे किया, उन्हें क्या कठिनाइयां आईं, आदि-आदि। समस्या के बारे में खुद सोचिए, मित्रों और शुभचिंतकों से विचार-विमर्श कीजिए। एक-दो बार के प्रयत्न से ही आप समस्या का समाधान ढूंढ़ लेंगे।
इस सारे विवेचन का उद्देश्य सिर्फ एक ही है, और वह यह है कि आप जिस प्रकार रो$जमर्रा की समस्याओं से जूझने के लिए अपनी तर्क और विश्लेषण शक्ति का प्रयोग करते हैं, उसी प्रकार अपनी कल्पनाशक्ति का प्रयोग करना भी आरंभ करें। यह आदत सायास अपनाएं। एक बार आपने कल्पनाशक्ति का योजनाबद्घ प्रयोग आरंभ कर दिया तो आपको इसके लाभ मिलने आरंभ हो जाएंगे और सफलता कुछ और आसान हो जाएगी। ***
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