प्रमोद कृष्ण खुराना
Pramod Krishna Khurana (also known as P.K. Khurana)
अक्सर ऐसा होता है कि आपका दिमाग कुछ कहता है, पर मन कुछ और कहता है। आपके दफ्तर का काम अधूरा पड़ा है। अगले दिन मीटिंग है, आपको मीटिंग की तैयारी करनी है लेकिन टीवी पर क्रिकेट का मैच चल रहा है। मैच ने रोमांचक मोड़ ले लिया है और आप चाहते हुए भी टीवी के सामने से हट नहीं पा रहे। जब तक मैच चलता रहता है, आप द्वंद्व में तो रहते हैं पर टीवी छोड़ नहीं पाते। यह किसी नौसिखिये अथवा बच्चे का किस्सा नहीं है, जिम्मेदार और परिपक्व लोग भी ऐसा व्यवहार करते देखे और पाये जाते हैं। क्यों होता है ऐसा? क्यों हर बार हमारा दिमाग हार जाता है और‘मन’ जीत जाता है? लंबे और गहरे शोध के बाद मनोवैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि यह चेतन और अचेतन मस्तिष्क के बीच की लड़ाई है। जिसे हम ‘दिमाग’ कह रहे हैं, वह हमारे चेतन मस्तिष्क का प्रतिनिधि है और जिसे हम‘मन’ कहते हैं, वह अचेतन मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है।
क्या है मस्तिष्क?
कुछ लोग मानते हैं कि हमारा विचार-प्रवाह और यादों का ख$जाना ही हमारा मस्तिष्क है। मौटे तौर पर यह सही भी है। हमारा मस्तिष्क चेतन और अचेतन, दो भागों में बंटा हुआ हे। चेतन मस्तिष्क तर्कशील भाग है जो अलग-अलग घटनाओं को जोड़ कर उनका विश्लेषण करता है, किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा घटना-विशेष की खूबियों और खामियों की पहचान करता है और तद्ïनुसार निर्णय लेता है। यह हमारे मस्तिष्क का बांयां भाग है। हमारा चेतन मस्तिष्क कुल मस्तिष्क का मात्र 10 प्रतिशत भाग है। इस नन्हे-से तर्कशील मस्तिष्क के ठीक विपरीत मस्तिष्क का दायां भाग कल्पनाशील और भावुक है। अचेतन मस्तिष्क हमारे मस्तिष्क का 90 प्रतिशत भाग घेरे हुए है। इस प्रकार अचेतन मस्तिष्क चेतन मस्तिष्क के मुकाबले 9 गुणा बड़ा है। हमारा अचेतन मस्तिष्क आकार में जितना बड़ा है, उसी अनुपात में शक्तिशाली भी है।
चेतन और अचेतन मस्तिष्क
चेतन और अचेतन मस्तिष्क का सबसे बड़ा अंतर यह है कि चेतन मस्तिष्क जो कुछ सोचता और करता है, वह हमें स्पष्टï न$जर आता है पर हमारा अचेतन मस्तिष्क जो करता है, उसका आधारभूत कारण बिना गहरी खोज के हर व्यक्ति की समझ नहीं आ सकता। चेतन और अचेतन मस्तिष्क की रस्साकशी के ज्यादातर मामलों में अचेतन मन की विजय होती है। सच पूछा जाए तो यह दो असमान लोगों की लड़ाई है। अचेतन मस्तिष्क हमारे चेतन मस्तिष्क से नौ गुणा ज्यादा बड़ा और म$जबूत होता है। दोनों की शक्ति में इतना बड़ा अंतर है कि मानो कुश्ती के किसी मुकाबले में एक तरफ विश्व स्तर का कोई अनुभवी और प्रशिक्षित पहलवान हो और दूसरी तरफ गली का कोई मामूली व्यक्ति। इसलिए यदि हम चेतन मस्तिष्क के माध्यम से अचेतन मस्तिष्क को हराना चाहेंगे तो ज्यादातर मामलों में हमें असफलता ही हाथ लगेगी। अचेतन मस्तिष्क की एक विशेषता यह है कि यह मनोरंजन और आनंद-प्रिय है। यही कारण है कि हर व्यक्ति को अपना शौक (हॉबी) काम से भी ज्यादा प्रिय होता है, क्योंकि उसमें उसे आनंद आता है। अचेतन मस्तिष्क की दूसरी विशेषता यह है कि इसे सुझाव दे-देकर अपने ढंग से ढाला जा सकता है। यानी, यदि आप बार-बार स्वयं को यह कहते रहें -- ‘मैं सवेरे उठ कर सैर करूंगा’, तो यह निश्चित है कि एक बार आपकी नींद सवेरे अवश्य खुलेगी। उसके बाद यह आप पर निर्भर है कि आप तुरंत उठकर सैर के लिए निकल पड़ते हैं या कोई बहाना बनाकर दोबारा सो जाते हैं। अचेतन मस्तिष्क की एक और विशेषता यह है कि यह सिर्फ धनात्मक आदेशों और सुझावों को ही पहचानता और मानता है। यानी, यदि आप अपने मस्तिष्क को आदेश दें -- ‘मैं सवेरे जल्दी उठा करूंगा ताकि सैर पर जा सकूँ’, तो हमारा मस्तिष्क उस आदेश का पालन करेगा, परंतु यदि आप अपने मस्तिष्क को आदेश दें -- ‘आज के बाद मैं देर तक नहीं सोऊंगा’ तो हमारा मस्तिष्क उसे हू-ब-हू ग्रहण करने के बजाए सिर्फ उसके धनात्मक भाग को ही ग्रहण करता है। इस प्रकार हमारे मस्तिष्क को कुछ इस तरह का संदेश मिलता है -- ‘आज के बाद मैं देर तक सोऊँगा।’ आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि इस प्रकार के सुझाव अथवा आदेश का परिणाम क्या होगा!
हम जानते हैं कि हमारी विचारधारा हमारी गतिविधियों और हमारी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है। वस्तुत: हमारे विचार हमारे जीवन की धारा ही बदल देते हैं। हमारे विचार हमारी मान्यताएं बन जाते हैं और हमारी निर्णय-प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। मान्यताओं के प्रभाव की बात करने से पहले अपनी मान्यताओं के बारे में कुछ और जानना समीचीन होगा।
मत, विश्वास और आस्था
हमारी मान्यताएं तीन तरह की होती हैं। मत, विश्वास और आस्था। अपने आसपास की घटनाओं तथा उपलब्ध तथ्यों अथवा साक्ष्यों से हमारा मत (ओपीनियन) बनता है, पर इसे बदलना आसान है। नये तथ्य अथवा साक्ष्य मिलने पर हमारे मत में परिवर्तन हो जाता है, लेकिन विश्वास (बिलीफ) के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। हमारे एवं हमारे आसपास के लोगों का अनुभव, उपलब्ध तथ्य एवं साक्ष्य तथा हमारी कल्पनाशक्ति, सबको मिलाकर हमारे विश्वास बनते हैं। एक बार हम किसी बात पर ‘विश्वास’ कर लें तो उसे बदलना आसान नहीं होता। किसी हद तक हम अपने विश्वासों के साथ चिपक जाते हैं, यहां तक कि यदि बाद में हमें नये तथ्य अथवा साक्ष्य मिलें जो हमारे विश्वास के विपरीत जाते हों तो हम तथ्यों को भी आसानी से स्वीकार नही करते। आस्था (कन्विक्शन) इससे भी ज्यादा म$जबूत है क्योंकि हमारी आस्था के साथ हमारी भावनाएं भी जुड़ी होती हैं। आवश्यक नहीं कि हमारी आस्था तर्कसंगत भी हो। यदि हम तर्क के बल पर किसी व्यक्ति की आस्था को नकारें तो वह उग्र और कभी-कभार तो हिंसक भी हो सकता है। हमारी धार्मिक मान्यताएं आस्था का अच्छा उदाहरण हैं।
आस्था के आयाम
हमें विश्वास या आस्था को लेकर घबराने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह एक बड़ी शक्ति है जिसके सक्रिय उपयोग से हम अपनी उन्नति सुनिश्चित कर सकते हैं। अब हम यह जानते हैं कि अचेतन मस्तिष्क को सुझाव और आदेश दिये जा सकते हैं तथा अचेतन मस्तिष्क सिर्फ धनात्मक भाषा ही स्वीकार करता है। हम यह भी जानते हैं कि अवचेतन मस्तिष्क आनंद-प्रिय है, अत: हम अवचेतन मस्तिष्क से जो काम करवाना चाहते हैं, उसके साथ मनोनुकूल आनंद भी मिला दें तो अवचेतन मस्तिष्क तुरंत आदेश मानेगा। यह हमारे हाथ में है कि हम अपनी दिनचर्या और अपनी आदतों का लेखा-जोखा करें और जहां आवश्यक हो, परिवर्तन कर लें। सफलता की मंजिल का यह सरलतम साधन है।
निर्णय लीजिए
आपके निर्णय आपका जीवन बनाते और बिगाड़ते हैं। सही समय पर लिया गया सही निर्णय आपकी सफलता आसान कर देता है और अनिर्णय के कारण मौका चूक जाने वाले लोग सारा जीवन हाथ मलते रह जाते हैं। किसी भी विषय पर निर्णय लेते ही आप अनोखी प्राकृतिक शक्ति से भर जाते हैं। आपमें एक नई स्फूर्ति आ जाती है। यदि निर्णय कठिन हो तब तो आप इस ऊर्जा को स्पष्ट महसूस कर सकते हैं। याद रखिए, यदि आप अपने निर्णय स्वयं नहीं लेंगे तो आपके संबंध कोई और व्यक्ति निर्णय लेने लगेगा और तब आप उसके निर्णय पर चलने के लिए बाध्य होते चले जाएंगे। गलत निर्णय लेने के डर से निर्णय लेना मत छोडिए। गलत फैसला लेने से डर लगता हो तो ज्यादा से ज्यादा निर्णय लीजिए। आपके सही निर्णय गलत फैसलों से हुए नुकसान की भरपाई कर देंगे और आपके मन से गलत निर्णय का हौवा भी समाप्त हो जाएगा।
आसान है सफलता
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि किसी निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम अपने अवचेतन मस्तिष्क की शक्ति का प्रयोग अपने हक में कर सकते हैं। अवचेतन मस्तिष्क की कार्य प्रणाली समझकर उसे तद्नुसार सुझाव अथवा आदेश देकर हम सायास अपनी आदतें बदल सकते हैं और सफलता की ओर ले जाने वाली आदतें अपना सकते हैं। भारतवर्ष में ‘मन के जीते जीत है’ का दर्शन आरंभ से ही प्रचलन में रहा है। दुर्भाग्यवश, पिछले कुछ दशकों में हमने इसके महत्व को समझने का प्रयास नहीं किया, परिणाम यह है कि हमें हर ओर निराशा का वातावरण नजर आता है। परंतु ज्ञानीजन जानते हैं कि निराशा की घनघोर रात में भी आशा के सितारे चमचमाते रहते हैं। चाह हो तो आप भी इन सितारों के हमराही हो सकते हैं।
अब आप यह जान गए होंगे कि यदि आप निश्चय कर लें तो आप कुछ भी कर सकते हैं, और इस ‘कुछ भी’ की कोई सीमा नहीं है। तो आज ही, बल्कि अभी ही अपने वर्तमान जीवन का लेखा-जोखा कीजिए और अपनी सफलता के लिए आवश्यक निर्णय लेकर उन पर कार्य आरंभ कर दीजिए। याद रखिए, सफलता सिर्फ उनके लिए बनी है जो सचमुच सफल होना ही चाहते हैं। ***
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