Wednesday, September 21, 2011

Idea That Will Change Our Life : आइडिया, जो बदल दे हमारी दुनिया





Idea That Will Change Our Life : आइडिया, जो बदल दे हमारी दुनिया

By :
P. K. Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

प्रमोद कृष्ण खुराना

Pioneering Alternative Journalism in India

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आइडिया, जो बदल दे हमारी दुनिया
 पी.के. खुराना



बाबा अन्ना हज़ारे के आंदोलन का दूसरा चरण पूरा हुआ। इस बीच कई नाटक हुए, सरकार ने कई रुख बदले, हर जगह मात खाई और अंतत: अन्ना हज़ारे का जादू संसद के सिर चढ़कर बोला। यह अन्ना हज़ारे का जलाल ही था कि मनीष तिवारी और कपिल सिब्बल की बयानबाज़ी पर लगाम लग सकी। स्थाई समिति का गठन हो गया है और यह समिति लोकपाल बिल के सभी प्रारूपों का अध्ययन करके अपनी सिफारिशें देगी। समिति की सिफारिशें आने के बाद ही पता चल पायेगा कि सरकार वाकई जनलोकपाल बिल के प्रति गंभीर है या यह भी उसकी ओर से समय बर्बाद करने और जनता के गुस्से को ठंडा होने का वक्त देने की ही एक तिकड़म थी।

वस्तुस्थिति यह है कि अगर जनलोकपाल बिल की कुछ सिफारिशों को सरकार अपने बिल में शामिल कर ले और एक शक्तिशाली लोकपाल की नियुक्ति स्वीकार कर ले तो भी यह सिर्फ एक छोटी जीत है। सब जानते हैं कि शक्तिशाली लोकपाल की नियुक्ति से भ्रष्टाचार पर कुछ लगाम तो लगेगी पर इस अकेले कदम से भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता। पर यह स्वीकार करने में कोई गुरेज़ नहीं होना चाहिए कि यह वह एक आइडिया है, जो हमारी दुनिया को बदल सकता है, क्योंकि शक्तिशाली लोकपाल के बाद ‘राइट टु रीकॉल’, ‘राइट टु रिजेक्ट’, ‘गारंटी विधेयक’, ‘जनमत विधेयक’ और ‘जनप्रिय विधेयक’ की बारी है। इन कानूनों के अस्तित्व में आने से सरकारी कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों पर आवश्यक अंकुश लगेगा, भ्रष्टाचार का अंत होगा, जनता की सर्वोच्चता स्थापित होगी और लोकतंत्र में ‘तंत्र’ के बजाए ‘लोक’ की महत्ता बढ़ेगी, जो अंतत: जनतंत्र को सार्थक बनाएगा। यदि ये कानून अमल में आएं तो जनता वास्तव में जनार्दन बन जाएगी और उन जनप्रतिनिधियों पर जनता की सुनवाई का दबाव बनेगा जो सिर्फ चुनाव के समय ही जनता के दरवाजे पर जाते हैं।

अभी स्थिति यह है कि यदि आपको चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में से कोई भी पसंद नहीं है तो आप या तो वोट देने जाते ही नहीं या वोटिंग मशीन पर किसी भी बटन को दबाकर अपने इस अति महत्वपूर्ण अधिकार का व्यर्थ उपयोग कर आते हैं। ‘राइट टु रिजेक्ट’ कानून हमें अधिकार देगा कि कोई भी उम्मीदवार हमारी पसंद का न होने पर हम वोटिंग मशीन पर दिये गए अतिरिक्त बटन को दबाकर उपलब्ध उम्मीदवारों के प्रति अपनी नापसंदगी ज़ाहिर कर दें। इससे राजनीतिक दलों पर बेदाग और प्रभावी उम्मीदवारों के चयन का दबाव बनेगा जो राजनीति की गंदगी दूर करने में सहायक होगा।

‘राइट टु रीकॉल’ भी जनता के पास एक महत्वपूर्ण हथियार होगा ताकि चुने जाने के बाद जनप्रतिनिधि निरंकुश न हो जाएं। यदि चुना हुआ प्रतिनिधि जनता की उपेक्षा करने लगे या मनमानी पर उतर आये तो जनता को उसे वापिस बुलाने का हक होगा। इससे जनप्रतिनिधियों पर विधानसभा अथवा संसद में अपना व्यवहार संयत रखने, विभिन्न सदनों में जनता की आवाज़ बनने तथा अपने क्षेत्र में विकास कार्य करवाने का दबाव बनेगा।

इसी प्रकार ‘गारंटी विधेयक’ नामक एक तीसरा कानून सरकारी अधिकारियों पर लागू होगा। यदि सरकारी कर्मचारी समय पर काम न करें, रिश्वत के जुगाड़ के लिए अकारण काम को टालते रहें तो उनका वेतन कटेगा या उन पर जुर्माना लगेगा या दोनों सजाएं भुगतनी पड़ सकती हैं। इससे सरकारी कर्मचारी निट्ठले और भ्रष्ट नहीं हो सकेंगे, नौकरशाही पर लगाम लगेगी और भ्रष्टाचार की प्रभावी रोकथाम होगी।

‘जनमत विधेयक’ का अर्थ है कि कोई भी कानून बनाने से पहले नागरिक समाज की राय ली जाएगी। एक निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से नागरिक समाज प्रस्ताविक विधेयक में संशोधन सुझा सकेगा या फिर उसे पूरी तरह से रद्द करवा सकेगा। इस प्रकार कोई भी बिल, कानून उसी रूप में बन सकेगा जिस रूप में जनता को उसकी आवश्यकता है।

‘जनप्रिय विधेयक’ का अर्थ है कि यदि नागरिक समाज कोई कानून बनावाना चाहता है, जो कि पहले से अस्तित्व में नहीं है, तो राज्य अथवा केंद्र के जनप्रतिनिधियों को वह कानून बनाना आवश्यक हो जाएगा।

इस समय भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। जनसामान्य इस स्थिति से इतना नाराज़ है कि उसने अन्ना हज़ारे और उनके साथियों की हर गलती और कमी को नज़रअंदाज़ किया और सरकार के विरोध में ऐसी लहर बनाई कि सरकार को घुटने टेकने पड़े। सामान्यजन शायद जनलोकपाल बिल के प्रावधानों के बारे में ज्य़ादा नहीं जानते, जानना भी नहीं चाहते, वे सिर्फ भ्रष्टाचार से छुटकारा पाना चाहते हैं। सरकार द्वारा बाबा अन्ना हज़ारे के आंदोलन के सामने घुटने टेकने का कोई संबंध जनलोकपाल बिल के गुणों-अवगुणों से नहीं है। आंदोलन को आम आदमी का समर्थन भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक नफरत के कारण मिला, न कि जनलोकपाल बिल के प्रति सकारात्मक समर्थन के। कहा जा सकता है कि यह आंदोलन वस्तुत: अन्नागिरी का सफल परीक्षण साबित हुआ है और अब इसे और भी मजबूती से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
एक ज़माना था जब कहा जाता था -- ‘यथा राजा, तथा प्रजा’। यानी यह माना जाता था कि राजा जैसा होगा, प्रजा वैसी ही हो जाएगी। समय बदला, निज़ाम बदला, शासन के तरीके बदले, यहां तक कि शासकों की नियुक्ति के तरीके बदले और लोकतंत्र के ज़माने में प्रजा ही अपने भाग्य विधाता जन-प्रतिनिधियों की भाग्य विधाता बन बैठी। आज के ज़माने में व्यावहारिक स्थिति ऐसी है कि इस पर ‘यथा प्रजा, तथा राजा’ की उक्ति ही सटीक लगती है। मतलब यह है कि प्रजा जैसी होगी, देश की बागडोर थामने वाले शासकों को भी वैसा ही होना पड़ेगा।

आवश्यकता इस बात की है कि हम सरकारी कर्मचारियों, नौकरशाहों और अपने प्रतिनिधियों की कारगुज़ारी पर लगातार नज़र रखें। हम यदि नहीं बदलेंगे तो हम इन्हें भी नहीं बदल पायेंगे। एक और महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि शहरी मतदाता, खासकर पढ़े-लिखे लोग मतदान इसलिए नहीं करते कि उन्हें लगता है कि सरकारें बदलने से उनका कुछ भी बदलने वाला नहीं है। हमें अपनी इस सोच को भी बदलना होगा। हमें याद रखना होगा कि सरकारें कभी क्रांति नहीं लातीं। क्रांति की शुरुआत सदैव जनता की ओर से हुई है। अब जनसामान्य और प्रबुद्धजनों को एकजुट होकर एक शांतिपूर्ण क्रांति की नींव रखने की आवश्यकता है। ई-गवर्नेंस, शिक्षा का प्रसार, अधिकारों के प्रति जागरूकता और भय और लालच पर नियंत्रण से हम निरंकुश अधिकारियों और राजनीतिज्ञों को काबू कर सकते हैं। यह अगर आसान नहीं है तो असंभव भी नहीं है। 


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