Saturday, November 24, 2012

जलाओ दिमाग की बत्ती




जलाओ दिमाग की बत्ती
                                                                                                                                l पी. के. खुराना
जनसामान्य में पीजीआई के नाम से प्रसिद्ध चंडीगढ़ स्थित चिकित्सा शिक्षा एवं शोध के स्नातकोत्तर संस्थान 'पोस्टग्रैजुएट इंस्टीट्यूट ऑव मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्चसे जुड़े तीन अलग-अलग अध्ययनों ने मेरे दिमाग की बत्ती जलाई है और मुझे उम्मीद है कि ये अध्ययन कुछ और लोगों के दिमाग की बत्ती भी जला सकते हैं।
मेरे मित्र और हास्य की दुनिया के बेताज बादशाह रहे स्वर्गीय जसपाल भट्टी ने अपने प्रसिद्ध कार्यक्रम उलटा-पुलटा के एक शो में आधुनिक जीवन की विकृति को चित्रित करते हुए बताया था कि आज के बच्चे खेल के नाम पर कंप्यूटर गेम्स या प्ले स्टेशन गेम्स में खोये रहते हैं और इस कारण शारीरिक गतिविधियों और व्यायाम से उनका नाता टूट गया है जिसके कारण उन्हें छोटी उम्र में ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं।
आज लगभग हर घर में केबल टेलिविज़न सुविधा उपलब्ध है, यानी सारा साल, हर रोज़, चौबीसों घंटे टीवी के किसी न किसी चैनल पर कोई न कोई मनोरंजक अथवा मनपसंद कार्यक्रम आ ही रहा होता है। हर कोई टीवी का दीवाना है। छोटे बच्चे कार्टून कार्यक्रमों में मस्त हो जाते हैं। मां-बाप इसे बड़ी सुविधा मानते हैं क्योंकि कार्टून शो में खोये बच्चे को कुछ भी और कितना भी खिलाना आसान होता है, बच्चा टीवी में व्यस्त हो जाता है और घर से बाहर नहीं जाता, शरारतें नहीं करता, फालतू की जि़द नहीं करता। संपन्न आधुनिक शहरी घरों में बच्चों के लिए प्ले स्टेशन पोर्टेबल (पीएसपी) भी उपलब्ध हैं और बच्चे इनमें खोये रहते हैं।
मां-बाप सोचते हैं कि बच्चा कार्टून ही तो देख रहा है, लेकिन वे उससे होने वाले दिमागी प्रभाव को नहीं समझ पाते। कार्टून शो में सीन बदलने की गति यानि फ्लिकरिंग इतनी तेज़ होती है कि कई बार बच्चे का दिमाग उसे पकड़ नहीं पाता और वह कन्फ्यूज़ हो जाता है। इससे बच्चे को उलटी होने जैसा महसूस हो सकता है। सीन बदलने के कारण रोशनी की तीव्रता तेजी से घटती-बढ़ती है, जिसे फ्लैशिंग कहते हैं। इससे भी बच्चों की आंखों पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसे फोटोफोबिया कहा जाता है। लगातार कार्टून देखने वाले अथवा प्ले स्टेशन पर खेलने वाले बच्चे अक्सर इसीलिए बाद में थकान महसूस करते हैं और उन्हें मिरगी की शिकायत हो सकती है। पीजीआई में पीडियाट्रिक मेडिसिन की प्रोफेसर डा. प्रतिभा सिंघी तथा पीजीआई के ही स्कूल ऑव पब्लिक हेल्थ के डा. सोनू गोयल ने शहर के दो दर्जन से अधिक स्कूलों में हुए एक सर्वेक्षण के परिणामों की पुष्टि करते हुए बताया कि बच्चों द्वारा लंबे समय तक कार्टून देखना अथवा प्ले स्टेशन पर खेलना उनकी सेहत के लिए खतरनाक है।
अल्ज़ाइमर एक ऐसी बीमारी है जिससे ग्रस्त व्यक्ति रोज़मर्रा की साधारण चीजों को भी भूलने लगता है, मसलन, अलमारी खोलनी हो तो फ्रिज खोलकर खड़े हो जाएं, बात करते समय भूल जाएं कि बातचीत का विषय क्या था, अपनी कोई बात समझाने के लिए किसी विशिष्ट घटना का जिक्र शुरू कर दें और यह भूल जाएं कि उस उदाहरण से समझाना क्या चाहते थे, हाथ में पकड़ी या गोद में पड़ी किसी चीज को इधर-उधर ढूंढ़ें। 'डिमेंशियाÓ यानी दिमाग के तंतुओं के मरने के कारण होने वाली बीमारी अल्ज़ाइमर से बचने के लिए तथा स्मरण शक्ति के विकास के लिए आयुर्वेद ब्रह्मी बूटी के प्रयोग की सिफारिश करता है।
पीजीआई में न्यूरोलाजी विभाग के प्रोफेसर व मुखिया डा. सुदेश प्रभाकर के अनुसार चूहों पर किए प्रयोगों से डाक्टरों ने पाया है कि भूलने की बीमारी के इलाज के लिए ब्रह्मी बूटी सचमुच लाभदायक है और अब वह भूलने की बीमारी से ग्रस्त मरीजों पर ब्रह्मी बूटी के क्लीनिकल प्रयोग की तैयारी कर रहे हैं। इसके तहत डिमेंशिया से पीड़ित सौ मरीजों का चयन किया गया है। इनमें से 50 को परंपरागत एलोपैथी दवाएं दी जाएंगी और बाकी 50 को ब्रह्मी से बनी दवाएं। फर्क यह है कि ब्रह्मी से बनी दवाओं की गुणवत्ता और पैकिंग आदि का जिम्मा पीजीआई के ही फार्माकोलाजी विभाग को दिया गया है, जहां मान्य अंतरराष्ट्रीय मानकों का भी ध्यान रखा जाएगा ताकि दवा के परिणाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश किए जा सकें। इस परियोजना की देखरेख कर रही टीम में पीजीआई के न्यूरोलाजी विभाग के डाक्टरों के अलावा एक आयुर्वेदाचार्य को भी शामिल किया गया है।
दिल्ली में रह रहीं डा. पूनम नायर ने चंडीगढ़ योग सभा के तत्वावधान में पीजीआई के साथ मिलकर विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को योगासनों से इलाज की पद्धति का अध्ययन किया ही, साथ ही उन्होंने पीजीआई में कार्यरत नर्सों को भी योगासन के माध्यम से अपने कार्य में दक्षता लाने की शिक्षा दी। यह अध्ययन चिंता, तनाव और उदासी से ग्रस्त मरीजों, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) से ग्रस्त मरीजों और काम के दबाव से ग्रस्त नर्सों पर आधारित था। मरीजों को तीन समूहों में बांटा गया, पहले समूह को परंपरागत एलोपैथिक दवाइयां दी गईं, दूसरे समूह को यौगिक क्रियाओं, योगासनों, यौगिक प्राणायाम और योग मुद्राओं और काउंसलिंग की यौगिक चिकित्सा दी गई और तीसरे समूह को शवासन, प्राणायाम, खुशी और सफलता की स्थिति में स्वयं की कल्पना करने, अपने इष्ट भगवान के ध्यान आदि से यौगिक विश्राम से संबंधित क्रियाएं करवाई गईं।
डाक्टरों और नर्सों का जीवन बहुत कठिन होता है और लगातार रोगियों के संपर्क में रहने के कारण उनका अपना स्वास्थ्य हमेशा खतरे में रहता है। काम का दबाव उन्हें चिड़चिड़ा बना देता है और वे तनावग्रस्त हो सकते हैं। इसीलिए डा. पूनम नायर ने योग क्रियाओं का प्रयोग नर्सों पर भी किया। मरीजों और नर्सों पर यह प्रयोग कुछ वर्ष चला और इसके परिणाम आश्चर्यजनक रूप से उत्साहवर्धक रहे।
आज हमारा जीवन बहुत व्यस्त है और करिअर की दौड़ में सरपट भागते हुए हम सोच ही नहीं पा रहे कि हम जीवन में क्या खो रहे हैं। एकल परिवार में कामकाजी दंपत्ति के बच्चे अकेलापन महसूस करने पर टीवी और प्ले स्टेशन में व्यस्त होने की कोशिश करते हैं। भावनात्मक परेशानियों से जूझ रहा बच्चा एक बार इनका आदी हो जाए तो वह कई स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो जाता है। किशोर अथवा युवा होते बच्चे भी व्यायाम के बजाए डिस्कोथेक के रेशमी अंधेरों, चौंधियाने वाली रोशनियों और तेज संगीत के शोर में गुम होते हुए सोच ही नहीं पाते कि उनका जीवन किन किस ओर बढ़ रहा है।
पीजीआई के उपरोक्त तीनों अध्ययनों का लब्बोलुबाब यह है कि योग और आयुर्वेद को एलोपैथी के शोध और गुणवत्ता के मानकों से जोड़ दिया जाए तो चिकित्सा विज्ञान विकसित होगा और रोगियों को लाभ होगा। इन अध्ययनों का एक और महत्वपूर्ण सबक यह भी है कि परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के साथ ज्यादा समय बिताएं और एक-दूसरे को भावनात्मक सहयोग दें। परिवार के सदस्यों का साथ और प्यार किसी भी बच्चे के लिए वरदान है जो उसे जीवन की कठिनाइयां झेलने के काबिल बनाता है और नशे और बीमारी की परेशानियों से बचाए रखता है। इस मंत्र की उपेक्षा करना आसान है पर उससे उत्पन्न होने वाली परेशानियों का सामना करना बहुत मुश्किल है। ***

P. K. Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

प्रमोद कृष्ण खुराना

Alternative Journalism
वैकल्पिक पत्रकारिता

Please write to me at :
pkk@lifekingsize.com


1 comment:

  1. Listen...

    What I'm going to tell you may sound pretty weird, maybe even a little "out there..."

    WHAT if you could just push "Play" to LISTEN to a short, "musical tone"...

    And INSTANTLY bring MORE MONEY to your LIFE?

    And I'm talking about hundreds... even thousands of dollars!!

    Sounds way too EASY? Think this couldn't possibly be for REAL?

    Well, I'll be the one to tell you the news.

    Usually the greatest blessings life has to offer are the easiest to RECEIVE!!

    In fact, I'm going to provide you with PROOF by allowing you to listen to a REAL "miracle money-magnet tone" I've synthesized...

    (And COMPLETELY RISK FREE).

    You just push "Play" and the money will start coming into your life... starting so fast, you will be surprised...

    GO here now to experience this magical "Miracle Money-Magnet Tone" - as my gift to you!!

    ReplyDelete