Wednesday, March 30, 2011

Sewa Kshetra Ka Arthshastra : सेवा क्षेत्र का अर्थशास्त्र





Sewa Kshetra Ka Arthshastra

By :
P. K. Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

प्रमोद कृष्ण खुराना


pkk@lifekingsize.com



सेवा क्षेत्र का अर्थशास्त्र
 पी. के. खुराना

भारतवर्ष में उदारवाद के पदार्पण के साथ ही सेवा क्षेत्र का विस्तार आरंभ हो गया। आईटी कंपनियां चढ़ता सूरज बन गईं और बहुत से पारंपरिक व्यवसाय उनके सामने बौने पड़ गए। अभी तक सेवा क्षेत्र लगातार बढ़ता ही रहा है। भारतवर्ष में आईटी (इन्फरमेशन टैक्नोलॉजी), केपीओ (नॉलेज प्रोसेसिंग आर्गेनाइज़ेशन्स), बीपीओ (बिज़नेस प्रोसेसिंग आर्गेनाइज़ेशन्स) तथा कॉल सेंटर जैसी सेवाओं का विस्तार होने से रोज़गार के अवसर बढ़े, जीवन स्तर सुधरा और अर्थव्यवस्था ने नई करवट ली।

परंतु इन सब के विकास के दो बड़े कारण थे। पहला, भारतवर्ष के लोग अंग्रेज़ी पढ़-लिख-बोल सकने में पारंगत हैं और थोड़े से प्रशिक्षण के बाद वे अमरीकन लहजे में बोलना सीख लेते हैं। दूसरा, भारतवर्ष में वेतन का स्तर विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है, कर्मचारियों के नखरे कम हैं, कुशलता ज्य़ादा है। सन् 2007 तक ऐसा भी दौर था कि कर्मचारियों की गुणवत्ता का स्तर देखे बिना, कर्मचारियों की भर्ती आवश्यक हो गई। फिर 2008 के मध्य में मंदी का जो दौर चला उसने कइयों की कमर तोड़ दी। उद्योग बंद हो गए, वेतन घट गए और बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार हो गए। सन् 2010 में हालांकि पश्चिमी देशों का संकट नहीं टला, पर भारतवर्ष धीरे-धीरे मंदी की मार से उबरा और कर्मचारियों की मांग एक बार फिर से बढऩे लगी। यह कहना तो मुश्किल है कि मंदी से पहले का दौर हू-ब-हू वापिस आ गया है, पर कुशल कर्मचारियों की खोज आज भी अपने आप में एक प्रोजेक्ट है। यही कारण है कि कुशल कर्मचारियों का वेतन बढ़ा है।

इस वर्ष महंगाई का एक नया दौर चला और कभी तेल, कभी प्याज और कभी चीनी ने रुलाया, जिससे आम आदमी की रसोई का बजट निश्चय ही बिगड़ा है। महंगाई के कारण भी कर्मचारियों के वेतन बढ़े हैं। वेतन की इस बढ़ोत्तरी ने सेवा क्षेत्र के सामने एक नया संकट खड़ा कर दिया है। हम पहले ही कह चुके हैं कि भारत में सेवा क्षेत्र के विस्तार का एक बड़ा कारण यहां के वेतन पश्चिमी देशों से कम होना है, जिसके कारण सेवाओं की कुल कीमत किफायती होती है। यहां तक कि हमारे देश में सेवा क्षेत्र का विस्तार इतना हुआ कि यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 57 प्रतिशत हो गया। अगर हम अकेले आईटी क्षेत्र और बीपीओ की ही बात करें तो देश के कुल निर्यात में इसका हिस्सा 25 प्रतिशत है। पिछले दो दशकों में हर साल इसमें 30 से 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। परंतु अब वेतन बढ़ जाने से सेवा क्षेत्र को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

भारतीय सेवा क्षेत्र से जुड़ी ज्यादातर कंपनियों ने गुणवत्ता के कारण नहीं, बल्कि कम कीमत के कारण नये करार किये हैं। अभी कुछ समय पहले तक भी भारत में आईटी से जुड़े लोगों का वेतन विकसित देशों के कर्मचारियों के वेतन के छठे हिस्से के बराबर होता था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है और भारतीय कर्मचारियों का वेतन बढक़र पश्चिमी कर्मचारियों के वेतन के लगभग तीसरे हिस्से के बराबर हो गया है। वेतन में बेतहाशा वृद्धि की वजह से अंतरराष्ट्रीय जगत में हमें जो लाभ था, वह समाप्त हो जाएगा क्योंकि वेतन बढ़ते रहने से अंतत: सेवाओं की कीमत बढ़ानी पड़ेगी। यदि सेवाओं की कीमत में वृद्धि हुई तो हमारी सेवाएं किफायती नहीं रह जाएंगी और फिर हमें पश्चिमी देशों की कंपनियों से मुकाबला करने के लिए अपनी सेवाओं की गुणवत्ता में बड़ा सुधार लाना होगा।

सच तो यह है कि पश्चिमी देशों की बहुत सी कंपनियां हमारी सेवाओं में गुणवत्ता की कमी को बर्दाश्त करती हैं क्योंकि सेवाओं की कीमत काफी कम है। उतनी कम कीमत में उन्हें सही गुणवत्ता की उम्मीद भी नहीं थी। यही कारण है कि सेवा क्षेत्र के विस्तार में कोई बाधा नहीं आई। लेकिन यदि सेवाओं के दाम बढ़ते रहे तो हमारी सेवाओं से ‘किफायती’ का लेबल हट जाएगा और फिर हमें प्रतियोगिता में बने रहने के लिए गुणवत्ता में बड़े सुधार की ओर ध्यान देना होगा। यह बहुत सी भारतीय कंपनियों के लिए हनुमान छलांग जैसा होगा।

ऐसा नहीं है कि भारतीय कंपनियों में गुणवत्ता नहीं आ सकती, पर शायद ‘जुगाड़’ की संस्कृति में पले-बढ़े लोगों के लिए गुणवत्ता की कीमत को समझ पाना आसान नहीं होता। उसके लिए आपको एक अलग मानसिक धरातल पर आना होता है और यह एकदम से संभव नहीं है, जब तक कि इसके लिए योजनाबद्ध ढंग से तैयारी न की जाए।

हमारे सामने कुछ बहुत अच्छे उदाहरण हैं जहां भारतीय कंपनियों ने गुणवत्ता के नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। टाइटन ने सभी स्विस कंपनियों को धता बताते हुए विश्व की सर्वाधिक स्लिम वाटरपू्रफ घड़ी बनाने में सफलता प्राप्त की, सु-कैम ने इन्वर्टर के रूप में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया, सन् 1995 में जब एस.आर.राव ने गुजरात के शहर सूरत के म्युनिसिपल कमिश्नर के रूप में चार्ज लिया तो उस समय सूरत प्लेग जैसी महामारी के लिए कुख्यात था, कुछ ही सालों में उन्होंने सूरत की शक्ल बदल दी और वह भारतवर्ष का दूसरा सबसे साफ शहर बन गया, 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी जे.के.त्रिपाठी ने सन् 1999 में जब त्रिची के पुलिस कमिश्नर के रूप में कामकाज संभाला तो वहां सांप्रदायिक लावा उबल रहा था और उस ज्वालामुखी में विस्फोट कभी भी संभव था। उन्होंने भी अपनी निष्ठा और सूझबूझ से वहां की पुलिस के चरित्र में करिश्माई परिवर्तन ला दिया। लब्बोलुबाब यह कि कोई मुश्किल ऐसी नहीं है जिसका सामना न किया जा सके पर उसके लिए गहन निरीक्षण, आत्म-अनुशासन, आत्मविश्वास, धैर्य और अदम्य साहस की आवश्यकता होती है। क्रांतिकारी परिवर्तन सिर्फ सोच से ही संभव नहीं होते, उनके लिए कदम-कदम पर लड़ाई लडऩी होती है और साथियों का साथ लेना होता है।

आज हम जानते हैं कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था के विकास में सेवा क्षेत्र की भूमिका बहुत बड़ी है, जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। सेवा क्षेत्र की इस मजबूती को बनाए रखने के लिए हमारे पास दो ही विकल्प हैं। पहला, हम किफायती कीमत में सेवाएं देने में सक्षम बने रहें, और दूसरा, हमारी सेवाओं की गुणवत्ता ऐसी हो कि ग्राहक उसे हर कीमत पर लेना चाहे। गुणवत्ता में बड़ा सुधार एक लंबी और महंगी प्रक्रिया है। इस परेशानी से बचने के लिए बहुत सी भारतीय कंपनियों ने चीन जैसे देशों में अपने कार्यालय खोल लिये हैं। लेकिन इसका दूरगामी परिणाम यही होगा कि भारतवर्ष को मिलने वाला बहुत सा व्यवसाय अंतत: अन्य सस्ते देशों में स्थानांतरित हो जाएगा और भारतीयों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी और भी बढ़ जाएगी। कीमतों में कमी संभव है या नहीं, यह एक बड़ी बहस का विषय है इसलिए हमारे पास अगल विकल्प यही बचता है कि हम अपनी सेवाओं की गुणवत्ता के सुधार की तैयारी आरंभ कर दें अन्यथा सेवा क्षेत्र का यह व्यवसाय अन्य देशों में स्थानांतरित हो जाएगा और यहां महंगाई के साथ-साथ बेरोज़गारी का एक और नया दौर शुरू हो जाएगा जिसे संभालना किसी भी कंपनी अथवा सरकार के बस में नहीं होगा। 

IT Sector, KPO, BPO, Call Centres, Inflation, Alternative Journalism.

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