Saturday, June 4, 2011

Achchhe Nagrik Kaise Banen ? : अच्छे नागरिक कैसे बनें ?






Achchhe Nagrik Kaise Banen ? : अच्छे नागरिक कैसे बनें ?

By :
P. K. Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

प्रमोद कृष्ण खुराना


Pioneering Alternative Journalism in India

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अच्छे नागरिक कैसे बनें ?
 पी. के. खुराना


मुंबई से एक बड़ी उत्साहवर्धक खबर आई है। मई माह के अंतिम रविवार को पर्यावरण दिवस के अवसर पर मुंबई के एक जोड़े ने इस अंदाज में शादी की कि उससे पर्यावरण को कोई क्षति न पहुंचे। डा. विवेक तलवानी और सुश्री मनस्वी जोशी ने पर्यावरण दिवस के अवसर पर ईको-फ्रेंडली शादी करके एक नया इतिहास रचा। इस शादी में न पटाखे छूटे और न रोशनी हुई, न लाउडस्पीकर का शोर मचा, न बारात निकली और न फूलों को काटकर गुलदस्ते बने। हाथ से बने कागज पर शादी के कार्ड छपे और मेहमानों को कार्डबोर्ड के बजाए मिट्टी के बर्तनों में मिठाई दी गई। इस जोड़े ने कार्ड के साथ मेहमानों के लिए बाकायदा नोट लिखा था जिसमें अपने पर्यावरण मित्र होने का विस्तार से उल्लेख था। मेहमानों से स्पष्ट अनुरोध किया गया था कि वे शादी में किसी तरह के गुलदस्ते न लाएं और तोहफे ऐसे हों जो पर्यावरण के अनुकूल हों। इस परिवार ने रिसेप्शन के लिए भी एक ईको फ्रेंडली होटल चुना। उन्होंने मेहमानों से यह भी आग्रह किया कि भोजन बेकार न करें, मन को जितना भाये, उतना ही लें। यह जिम्मेदार नागरिक होने का एक शानदार उदाहरण है।

ऐसे उदाहरण समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाए जाने चाहिएं ताकि अन्य लोग भी इससे प्रेरणा ले सकें। अभी पिछले ही हफ्ते मेरे लेख 'अच्छे इन्सान, अच्छे नागरिक’ में मैंने सामाजिक जिम्मेदारियों का जिक्र किया था। पाठकों को यह लेख इतना पसंद आया कि बहुत से पाठकों ने गूगल पर 'पीकेखुराना’ टाइप करके मेरी ईमेल ढूंढ़ी और मुझे बधाई दी। इसी से स्पष्ट है कि भारतवासी अच्छे इन्सान ही नहीं, अच्छे नागरिक भी बनना चाहते हैं। वे समाज के प्रति जिम्मेदार होना चाहते हैं और इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी लेने के उत्सुक हैं। मैं दोहराना चाहूंगा कि जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए हमें एक ऐसी मूल्य प्रणाली (वैल्यू सिस्टम) विकसित करनी होगी जहां हम सामान्य हित के लिए छोटे-छोटे त्याग कर सकें। इस तरह की सामाजिक मूल्य प्रणाली में हम अपने व्यक्तिगत हित से पहले समुदाय के हित का ध्यान रखते हैं। मैंने पहले भी बताया था कि सामाजिक मूल्य प्रणाली के तीन चरण हैं -- पहला, समाज के प्रति वफादारी; दूसरा, परिवार के प्रति वफादारी और तीसरा, खुद के प्रति वफादारी। अब हमें समाज के प्रति वफादारी को परिवार के प्रति वफादारी से ऊपर रखना होगा। अपनी असफलताओं का विश्लेषण करना होगा, उन्हें सफलता में बदलने के लिए सामूहिक प्रयत्न करना होगा विकसित देशों की अच्छाइयों को खुले मन से स्वीकार करने के साथ उन्हें अपनाना भी होगा। सेमिनार, गोष्ठियों और सभाओं से आगे बढ़कर काम करना होगा, यानी सिर्फ विचारक नहीं बल्कि कर्ता बनकर देश की प्रगति में सार्थक योगदान देना होगा।

यह स्पष्ट है कि अपनी सोच में बदलाव लाए बिना हम विकसित देश नहीं बन सकते। सरकारें कभी क्रांति नहीं लातीं। क्रांति की शुरुआत सदैव जनता की ओर से हुई है। अब जनसामान्य और प्रबुद्धजनों को एकजुट होकर एक शांतिपूर्ण क्रांति की नींव रखनी होगी। हमें अच्छे इन्सान ही नहीं, बल्कि अच्छे नागरिक भी बनना है, और इसके लिए मानसिक बदलाव की यात्रा अत्यंत आवश्यक है। यदि हम भारतवर्ष को विकसित देश बनाना चाहते हैं तो हम केवल सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते। यह पहल हमें खुद करनी होगी। अपने आसपास की समस्याओं पर निगाह रखनी होगी और उनके समाधान के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी। उदासीन रहकर, या 'हमें क्या लेना?’ कहकर हम अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।

हमें बचपन से ही अच्छा इन्सान बनना सिखाया जाता है, लेकिन शायद अच्छा नागरिक बनने की शिक्षा पर ज़ोर नहीं दिया जाता। अच्छा नागरिक बनने के लिए आवश्यक है कि हम जागरूक हों। हम जागरूक इन्सान बनें, जागरूक ग्राहक बनें, जागरूक मतदाता बनें, जागरूक नागरिक बनें। एक मतदाता के रूप में जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर वोट देने के बजाए जनप्रतिनिधियों की कारगुज़ारी को देखें, किसी भी एक पार्टी के साथ बंधने के बजाए उस उम्मीदवार को वोट दें जो जनसेवक बनकर जनता के काम आये, विधानसभा अथवा संसद में सक्रिय रहे और आपके हकों की लड़ाई लड़े। अपने जनप्रतिनिधियों के कामकाज की समीक्षा करते रहना एक आवश्यक कदम है जिसके बल पर हम उनके आचरण को नियंत्रित कर सकते हैं और भ्रष्टाचार पर रोक लगा सकते हैं। एक ग्राहक के रूप में अपना हक पहचानें, बिल पर ही सामान खरीदें, और खरीदे गए सामान में खामी होने पर शिकायत करने से गुरेज़ न करें। एक नागरिक के रूप में अपने उत्तरदायित्व समझें, अपने आसपास के लोगों को जागरूक बनाएं और देश में उपलब्ध असीम अवसरों का लाभ उठाकर स्वयं भी समृद्ध हों और दूसरों की समृद्धि के लिए भी काम करें। सिर्फ सरकार को कोसते रहने से कुछ नहीं होने वाला। हमें आगे बढ़कर सक्रिय समर्थन या सक्रिय विरोध करना होगा। याद रखिए, जागरूक और सक्रिय हुए बिना हम अच्छे नागरिक नहीं बन सकते। जागरूकता और सक्रियता, अच्छे नागरिक बनने के मूलमंत्र हैं।

डा. विवेक तलवानी और सुश्री मनस्वी जोशी ने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। हमें इससे सबक लेना होगा, इसका प्रचार करना होगा, इस पर चर्चा करते रहना होगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसके बारे में जानें और इसका अनुकरण कर सकें। इसी में देश और समाज का भला है, इसी में हम सब का भला है। 


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