Friday, July 22, 2011

खेल, खिलाड़ी और खिलवाड़ :: Khel, Khiladi Aur Khilwad






खेल, खिलाड़ी और खिलवाड़ :: Khel, Khiladi Aur Khilwad


By :
PK Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

प्रमोद कृष्ण खुराना

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खेल, खिलाड़ी और खिलवाड़
 पी. के. खुराना

देश भर में शर्म और गुस्से की नई लहर उफान पर है। एक के बाद एक, कई खिलाडिय़ों का डोप टेस्ट में दोषी पाया जाना सचमुच शर्म की बात है और देशवासियों का गुस्सा जायज़ है। महिला धावकों मनदीप कौर और सिनी जोस के बाद अश्विनी अकुंजी के भी डोप टेस्ट में 'पाजिटिव’ पाये जाने के बाद इन खिलाडिय़ों का कैरियर बर्बाद होने के कगार पर है। यदि आगे की जांच में भी इन पर प्रतिबंधित दवाएं लेने का आरोप पुष्ट हो जाता है तो ये खिलाड़ी ओलिंपिक खेलों में भाग नहीं ले पायेंगे। इन खिलाडिय़ों ने गत वर्ष चीन में आयोजित एशियन गेम्स तथा नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीत कर भारत का नाम रोशन किया था और अगले वर्ष लंदन ओलिंपिक्स में इन खिलाडिय़ों के पदक लाने की आशा थी। अब यह आशा धूमिल हो गई है।

सन् 2009 में नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी के गठन के बाद कुल 6607 खिलाडिय़ों में से 242 खिलाड़ी दोषी पाये गए हैं। सन् 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों से पहले 12 खिलाडिय़ों को नशीली दवाइयां लेने का दोषी पाया गया था। सन् 2001 से अब तक 25 भारतीय भारोत्तोलकों को दोषी करार दिया जा चुका है और सन् 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में इंडियन वेटलिफ्टिंग फेडरेशन के खिलाडिय़ों के भाग लेने पर रोक लगा दी गई थी। सन् 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारी जुर्माना भरने के बाद ही उन्हें खेलों में भाग लेने की अनुमति मिल पाई थी।

यूक्रेनी कोच यूरी ओगोरडनिक की इस स्वीकारोक्ति पर कि महिला धावकों मनदीप, सिनी और अश्विनी को डाइटरी सप्लीमेंट लेने की सलाह उन्होंने ही दी थी, उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन ने सभी दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही का विश्वास दिलाया है, लेकिन अभी यह देखना बाकी है कि 'सभी दोषियोंÓ की परिभाषा में कौन-कौन आते हैं।

सन् 1958 में भारत को राष्ट्रमंडल खेलों में पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले तथा फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर भारतीय एथलीट मिल्खा सिंह ने हालांकि एक बयान में दोषी कोच और खिलाडिय़ों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही के साथ-साथ खिलाडिय़ों को मिले सभी सम्मान और नगद पुरस्कार वापिस लेने की सिफारिश की है, लेकिन धारणाओं और सच में ऐसी बहुत सी स्थितियां हैं जिन्हें अंग्रेज़ी में 'ग्रे एरियाज़’ कहा जाता है, यानी ऐसी स्थितियां जहां स्पष्टता का अभाव है। डोप टेस्ट के सभी पहलुओं की गहराई में जाने पर दोषी करार दिये गए अधिकांश खिलाडिय़ों की कहानी भी कुछ ऐसी ही नज़र आती है।

वल्र्ड एंटी डोपिंग एजेंसी के महानिदेशक राहुल भटनागर कहते हैं कि उनकी वेबसाइट पर प्रतिबंधित पदार्थों की पूरी सूची है। पर सच यह है कि यह सूची अंग्रेजी में है और वेबसाइट में प्रतिबंधित पदार्थों के वैज्ञानिक नाम दिये गए हैं। डाइटरी सप्लीमेंट एवं दवाइयां बनाने वाली कंपनियों के उत्पाद के नाम उनसे अलग होते हैं। बहुत बार कोई एक प्रतिबंधित पदार्थ 200 से भी अधिक दवाइयों में शामिल हो सकता है और इसकी कोई गारंटी नहीं है कि उस दवाई के पैक पर प्रतिबंधित पदार्थ का नाम भी दिया ही गया हो। वल्र्ड एंटी डोपिंग एजेंसी की वेबसाइट में भी उन सभी दवाइयों के व्यावसायिक नाम उपलब्ध नहीं हैं जिनमें इन प्रतिबंधित पदार्थों को शामिल किया जाता है। खिलाड़ी की तो बात ही छोडि़ए, कोई एक अकेला डाक्टर भी इनका पूरा रिकार्ड नहीं रख सकता। सच तो यह है कि हमारे देश में बहुत सी चीजें 'जुगाड़’ से चलती हैं। उनके लिए स्पष्ट नियमों और प्रणालियों का विकास नहीं किया गया है और न ही आवश्यक साधन उपलब्ध करवाये गये हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि खिलाडिय़ों के साथ भी ऐसा ही होता है।

पटियाला की नैशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोर्ट्स में खिलाडिय़ों को एंटी-डोपिंग पर तीन चार लेक्चर दिये तो जाते हैं, पर उन्हें समझ पाना अधिकांश खिलाडिय़ों के बस की बात नहीं है। लेक्चर अंग्रेजी में होते हैं जिसे हर खिलाड़ी नहीं समझ पाता। दक्षिणी और उत्तर पूर्वी राज्यों से आने वाले बहुत से खिलाड़ी तो हिंदी भी नहीं समझ पाते। बहुत से खिलाड़ी अधिक शिक्षित नहीं होते। उनसे यह उम्मीद करना गलत है कि वे किसी प्रशिक्षित डाक्टर की तरह प्रतिबंधित पदार्थों की सूची को समझ पायेंगे।

खेल के कैंप में फिजियोथेरापिस्ट, मसाजर, रिकवरी एक्सपर्ट तथा खिलाडिय़ों की आवश्यकतानुरूप विशेषज्ञ डाक्टरों की टीम होनी चाहिए तथा वहां आइस-बाथ का प्रबंध होना चाहिए, तभी आप खिलाडिय़ों को कड़ी मशक्कत वाला प्रशिक्षण दे सकते हैं अन्यथा उन्हें एक दिन के प्रशिक्षण के बाद तीन दिन तक के आराम की आवश्यकता पड़ेगी, जो कि व्यावहारिक नहीं है। इन सुविधाओं के अभाव में खिलाड़ी विवश होकर अन्य वरिष्ठ खिलाडिय़ों, प्रशिक्षकों तथा प्राइवेट डाक्टरों की सलाह पर निर्भर हो जाते हैं। दुर्भाग्यवश, भारत में अभी यही स्थिति है। यहां पूरा सिस्टम ही अभावग्रस्त है, उसके बावजूद डोप टेस्ट में असफल होने पर सबसे ज्यादा नुकसान केवल खिलाड़ी का ही होता है।

खेल कोई खिलवाड़ नहीं है। पेशेवर खिलाड़ी बनने के लिए वर्षों की कड़ी मेहनत, साधना और अनुशासन की आवश्यकता होती है। महिला खिलाडिय़ों के लिए तो और भी परेशानियां हैं जहां उनके साथ-साथ उनके मायके और ससुराल सहित उनके पूरे परिवार का बलिदान भी जुड़ा होता है। ऐसा कोई भी खिलाड़ी जान-बूझकर अपने कैरियर को दांव पर नहीं लगाना चाहेगा। जब तक पूरे सिस्टम की खामियों को दूर नहीं किया जाता और अपेक्षित सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाई जातीं, खेल मंत्री अजय माकन का यह बयान कोई मायने नहीं रखता कि सभी दोषियों को दंडित किया जाएगा। नियम बनाने के साथ-साथ सुविधाएं उपलब्ध करवाना भी आवश्यक है, अन्यथा जो भी कार्यवाही होगी वह इस बुराई को रोक नहीं पायेगी, परिणामस्वरूप भविष्य में भी देश को शर्मिंदगी होती रहेगी, खिलाडिय़ों के जीवन के साथ खिलवाड़ होता रहेगा और उनके पदक पाने की आशा धूल-धूसरित होती रहेगी। 


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Pioneering Alternative Journalism in India : PK Khurana

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