Sunday, July 31, 2011

स्वतंत्रता की समग्र क्रांति :: Swatantrata Ki Samagra Kranti









स्वतंत्रता की समग्र क्रांति :: Swatantrata Ki Samagra Kranti

By : PK Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

प्रमोद कृष्ण खुराना

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स्वतंत्रता की समग्र क्रांति
 पी. के. खुराना


रामराज्य वह अकेला शब्द है जो शायद हमारे सपनों के भारत की समग्र व्याख्या प्रस्तुत करता है। रामराज्य को किसी धर्म विशेष से नहीं जोड़ा जा सकता। किसी एक धर्म अथवा किसी एक राजनीतिक दल से जुड़ कर कई बार अच्छे विचार भी अपना अर्थ खो बैठते हैं। मैं न किसी एक धर्म का पक्षधर हूं और न ही किसी धर्म विशेष से जुड़े किसी राजनीतिक दल का समर्थक। रामराज्य एक दर्शन, एक व्यवस्था और एक शासन प्रणाली का प्रतीक है, जिसे लगभग हर भारतीय समझता है। अत: एक आदर्श भारत की व्यवस्था की व्याख्या के लिए मैं 'रामराज्य’ शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। मेरा आशय सिर्फ इतना है कि भारत की पूरी व्यवस्था ऐसी हो जिसकी तुलना 'रामराज्य’ से की जा सके।

सन् 1974 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने समग्र क्रांति का नारा दिया था और एक आदर्श शासन व्यवस्था की कल्पना की थी। परिणामस्वरूप जनता पार्टी का जन्म हुआ लेकिन दुर्भाग्यवश जनता पार्टी ने जय प्रकाश नारायण के आदर्शों को शीघ्र ही दरकिनार कर दिया। आंध्र प्रदेश में भगवान की तरह पूजे जाने वाले स्व. एन. टी. रामराव ने आदर्श शासन व्यवस्था की लहर पर सवार होकर कांग्रेस को धूल चटा दी लेकिन एक शासक के रूप में वे भी अन्य शासकों से अलग साबित नहीं हुए। बाद में केंद्र में स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार और उनके दल का हाल भी वही हुआ। प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री बने रहने के लिए उन्होंने आरक्षण का पिटारा खोला और समाज के दो हिस्सों के बीच ऐसी गहरी खाई बना दी जिसे पाटना आज तक संभव नहीं हो पाया है।

अब हम गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हज़ारे और उनके सहयोगियों का आंदोलन देख रहे हैं। बाबा अन्ना हज़ारे का आंदोलन ठुस्स करने के लिए सभी राजनीतिक दल एक हो गए हैं। यहां तक कि बाबा रामदेव के कारण भी इस आंदोलन को क्षति हुई है। लेकिन हमें यह भी तय करना होगा कि यदि यह आंदोलन सफल हो जाए तो हम इस से किन परिणामों की उम्मीद करते हैं ? हमारा उद्देश्य और कार्य-योजना दोनों स्पष्ट होने चाहिएं अन्यथा या तो यह आंदोलन असफल हो जाएगा या इससे मिली सफलता दीर्घजीवी नहीं होगी अथवा सफलता का रूप वह नहीं होगा, जिसके लिए आंदोलन किया जा रहा है।

यह सच है कि हम एक स्वतंत्र और प्रभुसत्तासंपन्न गणराज्य के रूप में अपने आंतरिक एवं बाह्य मामलों में अपनी इच्छा से निर्णय लेते हैं। देश की जनता को पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त है। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि जनता की यह स्वतंत्रता अभी अधूरी है। ज्य़ादातर मामलों में आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मज़ाक बन कर रह जाती है और गरीबों और वंचितों का शोषण आम बात है। एक विद्वान ने कहा है कि दुनिया में सिर्फ दो जातियां हैं, एक अमीर और दूसरी गरीब। हमारा दुर्भाग्य यह है कि सारी प्रगति और सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बन जाने के बावजूद हम अभी गरीब देशों में शुमार हैं और हमारे देश की जनता का एक बड़ा भाग सचमुच गरीब है। यह बड़ी चिंता का विषय है।

देश का समग्र विकास तभी संभव है जब देश के सभी नागरिक खुशहाल हों। खुशहाली यदि एक छोटे से वर्ग तक सीमित रह जाए तो वह असली विकास नहीं है। अभी भी विकास का प्रवाह सब ओर नहीं हो रहा है तो इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि वंचितों और गरीबों को आरक्षण, स्कूल-कॉलेजों में फीस में माफी, नौकरी में प्राथमिकता जैसे लॉलीपॉप तो दिये जाते हैं पर उनकी गरीबी दूर करने के लिए उन्हें मानसिक धरातल पर शिक्षित करने के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है। किसी भूखे को भोजन खिलाना ही काफी नहीं है। उसे भोजन कमाने के काबिल बनाना ज्यादा जरूरी है, और अब उससे भी एक कदम आगे बढ़कर उसे इस काबिल बनाना ज्यादा जरूरी है कि वह न केवल स्वयं के लिए भोजन कमा सके बल्कि अपने आसपास के समुदाय को भी भोजन कमाने के काबिल बना सके। यही कारण है कि कि गरीबी से लड़ाई के साथ-साथ गरीबी की मानसिकता से भी लडऩा आवश्यक है ताकि देश के विकास की राह में रोड़े अटकाने वाली बाधाओं को दूर किया जाए और विकास की राह पर तेज़ी से बढ़ा जाए।

लड़ाई में गिरना हार नहीं है, गिर कर न उठना हार है। गरीबी की मानसिकता उस हताशा का प्रतीक है जब व्यक्ति गिर जाने पर दोबारा उठने की हिम्मत नहीं करता। गरीबी दूर करना हमारी एक बड़ी चुनौती है, पर गरीबी की मानसिकता उससे भी बड़ी समस्या है। गरीबी की मानसिकता के दुष्प्रभावों को समझे बिना गरीबी के विरुद्ध लड़ाई संभव ही नहीं है। हमें यह याद रखना चाहिए कि बदलते जमाने की समस्याएं भी नई हैं और उनके समाधान भी पुराने तरीकों से संभव नहीं है।

हमें समझना होगा कि आदर्श शासन व्यवस्था के आवश्यक घटक क्या हैं और फिर उन्हें पाने के लिए एक समग्र कार्ययोजना बनाकर उस पर अमल करना होगा तभी रामराज्य का हमारा सपना सच हो सकेगा वरना अलग-अलग समय पर आंदोलन होते रहेंगे। कुछ छोटे-मोटे परिवर्तन भी हो जाएंगे। यहां तक कि कभी-कभार शासन व्यवस्था भी बदलेगी पर उसके परिणाम कुछ भी नहीं होंगे।

तो आइये, हमारे सपनों के भारत की आदर्श व्यवस्था के आवश्यक घटकों पर विचार करें। सबसे पहले देश में सहृदय पूंजीवाद के माध्यम से रोज़गार के नये अवसरों के सृजन की आवश्यकता है ताकि गरीबी दूर की जा सके। समृद्धि को स्थाई बनाने के लिए ऐसी शिक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है जो विद्यार्थियों को रोज़गार और स्व-रोज़गार दोनों के योग्य बनाए, नागरिकों को उनके कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति जागरूक और संवदेनशील बनाए। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो आरंभ से ही विद्यार्थियों में स्वास्थ्य के प्रति आवश्यक जागरूकता लाए और हमारी शिक्षा व्यवस्था देश को स्वस्थ और खुशहाल नागरिक दे। कर-प्रणाली न्यायसंगत हो और कर-प्रणाली के दोषों के कारण लोगों को काले धन की व्यवस्था का हिस्सा न बनना पड़े। राजनीतिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ संवेदनशील मानसिकता का विकास भी हो ताकि हम अत्यधिक लालच में पड़कर अपने ही साधनों और संसाधनों का दुरुपयोग न करें, विकास के साथ सुरक्षा भी सुनिश्चित हो। शासन व्यवस्था में जनता की भागीदारी हो ताकि शासक निरंकुश न हो जाएं और भ्रष्टाचार पर लगाम लग सके। यदि हम ऐसा कर सके तो हमारी स्वतंत्रता सचमुच सार्थक होकर देश के समग्र विकास में सहायक होगी। यह स्वतंत्रता की समग्र क्रांति होगी जो सब के लिए उपयोगी और मंगलकारी होगी। 


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