Saturday, April 14, 2012

Responsibility Should be Fixed Personally :: व्यक्तिगत हो जिम्मेदारी





व्यक्तिगत हो जिम्मेदारी
• पी. के. खुराना

बात तो राजस्थान की है, पर लागू सारे देश पर होती है। राजस्थान उच्च न्यायालय में रामगढ़ बांध के भराव के मुद्दे पर सुनवाई चल रही है। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कुछ सरकारी अधिकारियों को गवाही के लिए बुलाया है। मुकद्दमे चलते हैं तो गवाह बुलाए ही जाते हैं। इसमें कुछ भी नया नहीं है। पर इस मामले में एक बात नई अवश्य है, और वह यह है कि न्यायालय ने जिन अधिकारियों को तलब किया है उन्हें उनके पदनाम (डेजिगनेशन) से नहीं, बल्कि उनके नाम से सम्मन भेजे गए हैं। सरकारी अधिकारियों को नामजद करके सम्मन भेजने का यह काम नया है और यदि यह एक स्थापित प्रथा बन जाए तो देश का बहुत भला हो सकता है।

निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जाने जाने वाले श्री गुलाब कोठारी एक प्रतिष्ठित संपादक हैं और पत्रकारिता में वे तथ्यपरक पत्रकारिता के पक्षधर रहे हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय के इस मामले का हवाला देते हुए श्री कोठारी ने कई विचारणीय मुद्दे उठाए हैं। वे कहते हैं कि यदि कोई न्यायालय किसी अधिकारी को उनके नाम के बजाए उनके पद के नाम से सम्मन भेजता है तो अधिकारी उसकी परवाह नहीं करते, क्योंकि सम्मन आते रहते हैं और अधिकारी बदलते रहते हैं। निर्णय कोई व्यक्ति लेता है और सम्मन उसकी जगह किसी नये आये अधिकारी को मिल जाता है। इससे व्यक्ति की जिम्मेदारी आयद नहीं होती और अधिकारी लोग गलतियों अथवा भ्रष्टाचार के बावजूद सज़ा से बच निकलते हैं। इसीलिए वे कहते हैं कि यदि नामजद नोटिस देना शुरू हो गया तो अधिकारीगण न्यायालय की अवहेलना अथवा अवमानना का दुस्साहस नहीं कर पायेंगे और अपनी जिम्मेदारी निभाने में कुछ ज्य़ादा मुस्तैदी दिखाएंगे।

कानूनी जिम्मेदारी से बचने के लिए आज अधिकारीगण अपने लिखे आदेशों और पत्रों पर दस्तखत करते हैं, मुहर भी लगाते हैं और अपना पदनाम तो लिखते हैं पर नाम नहीं लिखते। इससे यदि किसी मामले में भ्रष्टाचार हुआ हो, पक्षपात हुआ हो, लापरवाही हुई हो या जाने-अनजाने गलती हुई हो तो संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी आयद कर पाना आसान नहीं होता। अधिकारियों के पास कानूनी रूप से जिम्मेदारी से बचने का यह आसान उपाय है जिसका वे लगातार दुरुपयोग करते हैं, और करते चले जा रहे हैं। इस चालाकी के चलते अधिकारी और राजनेता सब गड़बडिय़ों के बावजूद कानून की गिरफ्त से बच निकलते हैं क्योंकि इसके कारण उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी आयद नहीं हो पाती।
नाम के बजाए सिर्फ पदनाम से काम करने की प्रथा के परिणामस्वरूप अक्सर सम्मन तामील ही नहीं होते। किसी एक अधिकारी के नामजद न होने की वजह से उसके आला अधिकारी भी उसके सम्मन की तामील के लिए कुछ नहीं कर पाते। अधिकारियों के नामजद होने की स्थिति में सम्मन तामील करवाने की जिम्मेदारी उसके वरिष्ठ अधिकारियों पर डाली जा सकती है। नामजद अधिकारी की फरारी की स्थिति में भी तुरंत आवश्यक कार्यवाही की जा सकती है।

केवल पदनाम या डेजिगनेशन के प्रयोग का एक और परिणाम यह भी है कि यदि कोई अधिकारी कोई गड़बड़ी करने के बाद तबादले पर चला जाए, प्रमोट हो जाए या रिटायर हो जाए और गड़बड़ी का पता बाद में चले तो सम्मन तत्कालीन अधिकारी के नाम पर जाने के बजाए उसकी जगह पर नये आये अधिकारी को जारी किये जाएंगे, जिसका उस मामले से कुछ लेना-देना नहीं है। न्यायालय में मामला चलने पर भी न तो पुराने अधिकारी को तलब किया जाता है और न ही उसकी जगह नये आये अधिकारी को दोषी ठहराया जा सकता है।

दूसरा सवाल यह है कि जिस आदेश अथवा पत्र पर किसी अधिकारी का नाम नहीं है, उसकी कानूनी वैधता क्या है। होना तो यह चाहिए कि जानबूझ कर अपना नाम देने से बचने वाले ऐसे हर अधिकारी एवं राजनेता के विरुद्ध कार्यवाही हो और नाम न देना निषिद्ध हो जाए। यह नियम केवलसरकारी अधिकारियों पर ही लागू न हो बल्कि मंत्रियों, जिला परिषदों के अधिकारियों और पंचों-सरपंचों के आदेशों, परिपत्रों और पत्रों पर भी लागू होना चाहिए। बहुत बार सरकारी अधिकारियों की ओर से कई तरह के पत्र नागरिकों को मिलते हैं। कई बार नागरिकों को धमकाने के लिए भी दुर्भावनावश कई पत्र जारी किये जाते हैं। यदि वे गलत हैं, कानून के विरुद्ध हैं, कानून की अवहेलना करते हैं या कानून का दुरुपयोग करते प्रतीत होते हैं तो शिकायत किसकी होगी? यदि पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले का नाम होगा तो उस व्यक्ति विशेष की शिकायत संभव है, जो कि अन्यथा संयोग पर निर्भर करेगी। ऐसा एक गलत पत्र किसी निर्दोष नागरिक को बेतरह परेशान कर सकता है, उसके तलुवे घिसवा सकता है जबकि अधिकारी का कुछ भी नहीं बिगड़ता।

बहुत बार नेतागण किसी ट्रस्ट में ट्रस्टी बनने के लिए, अधिकारीगण कहीं से कोई स्वार्थ पूरा करने या रिश्वत लेने का जुगाड़ बनाने के लिए या कसी शिकायत से अपना पिंड छुड़वाने के लिए अनाप-शनाप नोटिस जारी करवा देते हैं, जिन पर अधिकारी के पद का हवाला तो होता है पर किसी का नाम नहीं होता। ऐसे हर पत्र की कानूनी वैधता समाप्त कर दी जानी चाहिए।

जब तक किसी आदेश पर, परिपत्र पर या पत्र पर पत्र लिखने वाले या आदेश जारी करने वाले का नाम नहीं होगा तब तक यह गड़बड़ी चलती रहेगी। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि केवल पदनाम की कानूनी परिपाटी को बदला जाए। ऐसे में तबादला हो जाने, प्रमोशन हो जाने या रिटायर हो जाने की स्थिति में भी वही अधिकारी नामजद होगा जिसने पत्र या आदेश जारी किया होगा। जब व्यक्तिगत जिम्मेदारी आयद होने की प्रथा सुदृढ़ होगी तो प्रशासनिक भ्रष्टाचार और ज्य़ादतियों की रोकथाम हो सकेगी। इसी प्रकार किसी मामले में पदनामधारी अधिकारी कानून की अवहेलना करता है या न्यायालय के आदेश को लागू नहीं करवाता है तो उस अधिकारी को पदनाम के साथ-साथ नामजद बुलाया जाना ही न्यायसंगत है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति विशेष की जि़म्मेदारी के आधार पर निर्णय होने चाहिएं। लोकतंत्र में न्याय की भूमिका सर्वोपरि है। कानून और दंड के भय से ही बहुत सा कार्य सही चलता है।

आम आदमी तो मरते दम तक कोर्ट जाता है और उसके मरने के बाद उसके बच्चे भी न्यायालय में जूतियां घिसते रह जाते हैं। इस दृष्टि से सरकारी पदों पर बैठे लोगों को भी नामजद पार्टी बनाना और तबादला, प्रमोशन या सेवानिवृत्ति के बाद भी नामजद व्यक्ति को बुलाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।

श्री गुलाब कोठारी के उठाये ये मुद्दे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये सिर्फ बहस के मुद्दे नहीं हैं, इन पर कार्यवाही होनी चाहिए। इसी में लोकतंत्र की सफलता है और देश का भला है। ***

Individual Responsibility
By : PK Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

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