Saturday, April 14, 2012

Well-in-time Day :: वैल-इन-टाइम डे





वैल-इन-टाइम डे
• पी.के. खुराना

हमने पश्चिम से बहुत कुछ सीखा है। बहुत-से मामलों में हम सिर्फ नकल ही कर रहे हैं, जबकि कई अन्य मामलों में हमने सिर्फ नकल से आगे बढ़कर उस कार्य-संस्कृति को भी आत्मसात किया है या काम के पीछे की कहानी को भी समझा और अपनाया है। इस बात का खुलासा करूं तो शायद तमिलनाडु के शहर मदुरै में स्थित अरविंद आई हास्पिटल का उदाहरण सर्वाधिक सटीक है। अरविंद आई हास्पिटल की अंतरराष्ट्रीय पहचान है क्योंकि यह लगभग न के बराबर के खर्च में आंखों के इलाज और अंधता दूर करने के मिशन से काम कर रहा है।

अरविंद आई हास्पिटल मात्र लाभ के लिए काम करने के बजाए जनसेवा की भावना से काम कर रहा है और आज यह मात्र एक अस्पताल नहीं बल्कि एक ख्यात जनसेवा संस्थान के रूप में जाना जाता है। अरविंद आई हास्पिटल में कार्यरत डाक्टर अन्य अस्पतालों के डाक्टरों की अपेक्षा कहीं ज्य़ादा आप्रेशन करते हैं। इस प्रकार ज्यादा कुशलता (एफिशेन्सी) के कारण इस इकोनामी आफ स्केल का लाभ मिलता है, यानी इसका लाभ ज्यादा मार्जिन में नहीं बल्कि ज्य़ादा से ज्य़ादा संख्या में आप्रेशन करने में है। जनसेवा की भावना का प्रत्यक्ष उदाहरण इस बात में है कि अरविंद आई हास्पिटल विश्व के किसी भी अन्य अस्पताल को अपने मैनेजमेंट सिस्टम दिखाने और बताने से गुरेज़ नही करता, तो भी उनका अनुभव यह है कि अन्य अस्पतालों से आये लोग ‘तकनीक’ तो समझ लेते हैं, पर अरविंद आई हास्पिटल की आत्मा, यानी संस्कृति को नहीं अपनाते, यही कारण है कि वे इस शानदार प्रबंधन प्रणाली का पूरा लाभ नहीं ले पाते। रणबीर कपूर की प्रसिद्ध फिल्म ‘राकेट सिंह’ भी यही संदेश दोहराती है कि किसी काम को पूर्णता में सीखने-समझने में ही लाभ है। पश्चिम से सीखी जाने वाली बातों पर भी यही नियम लागू होता है।

जगद्गुरू कहे जाने वाले भारतवर्ष में अब हम ज़ोर-शोर से मदर्स डे, फादर्स डे, वैलेंटाइन डे आदि मनाने लग गए हैं। पिछले कई वर्षों की तरह इस वर्ष भी देश के कई हिस्सों में 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे ज़ोर-शोर से मनाया गया। प्यार के फरिश्ते संत वैलेटाइन की स्मृति में मनाए जाने वाले इस दिन को मीडिया ने और भी ज्य़ादा उत्साह से मनाया। भारतवर्ष के लिए यह सिलसिला अब नया नहीं रहा। कोई भी ‘दिवस’ मनाने के पीछे एक उद्देश्य होता है, कभी वह पूर्वजों के बलिदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है, कभी बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न है और कभी रिश्तों की मजबूती का प्रयास या नए रिश्ते गढऩे का अवसर होता है।

पश्चिम से, या कहीं से भी अच्छी बातें सीखने में कोई बुराई नहीं है। दिमाग की खिड़की खुली रखने पर ही हम रोशनी अंदर आने दे सकते हैं। हमें भारत को जगद्गुरू कहने में गर्व होता है। जगद्गुरू बने रहने के लिए आंतरिक विकास एक आवश्यक शर्त है। आज जगद्गुरू भारत को हर अच्छी बात सीखने के लिए तैयार होना होगा, चाहे वह पश्चिम से आये या जापान, चीन अथवा ताइवान से।

पश्चिमी संस्कृति से समय की पाबंदी जीवन का एक हिस्सा है। भारतवर्ष में हम पश्चिम से मिलने वाली आसान चीजों की नकल कर रहे हैं लेकिन लाभदायक बातों को सीखने की कोशिश कुछ कम कर रहे हैं। समय की पाबंदी जीवन में सफलता के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। लेकिन हमारी परियोजनाएं हमेशा अलग ही कहानी कहती हैं। कोई भी सरकारी परियोजना समय पर पूरी नहीं होती, समय पर पूरी न होने के कारण उनकी कीमत कई-कई गुणा बढ़ जाती है। बहुत-सी परियोजनाएं इसलिए अधर में लटक जाती हैं कि सत्तासीन दल बदल गया। भारतवर्ष में सरकारी परियोजनाओं में समय की पाबंदी का कोई महत्व नहीं है। सरकारी लोगों के लिए आई.एस.टी. का मतलब ‘इंडियन स्टैंडर्ड टाइम’ नहीं बल्कि ‘इंडियन स्ट्रैचेबल टाइम’ है। सरकारी डिक्शनरी वाले ‘समय’ को आप रबड़ की तरह जितना चाहें लंबा खींच सकते हैं।

स्ट्रैचेबल टाइम की इस फिलासफी ने भारत का बहुत नुकसान किया है। अनुशासनहीनता, काम के प्रति गैर-जिम्मेदारी का स्थाई भाव हमारी कार्य-संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है। इसके इलाज के लिए अब हमें वैलेंडाइन डे की तरह ‘वैल-इन-टाइम-डे’ मनाना शुरू करने की आवश्यकता है।

जापान में सुनामी के समय कुछ अधिकारियों को रिएक्टरों को बंद करने का कार्य सौंपा गया। अपनी जान की परवाह किये बिना उन लोगों ने किस तल्लीनता और शालीनता से वह कर्तव्य निभाया, यह सारी दुनिया ने देखा। चीन और ताईवान का सामान दुनिया भर के बाजारों में कैसे बढ़त बना रहा है, यह हम सब के सामने है। भारतीय त्योहारों और भारतीय संस्कृति से जुड़ा चीनी और ताईवान सामान भारत भी इतना सटीक, उपयोगी और सार्थक होता है कि आश्चर्य होता है कि किसी भारतीय ने ऐसा क्यों नहीं सोचा?

लगभग 25 वर्ष पूर्व रीडर्स डाइजेस्ट के हिंदी संस्करण ‘सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट’ में एक लेख छपा था जिसमें यह बताया गया था कि भारतवर्ष में अंग्रेजों के शासनकाल के समय में मुंबई (तब बंबई) म्युनिसिपल कारपोरेशन के भवन के निर्माण के लिए ठेका दिया गया। वह निर्माण तय समय से पूर्व पूरा हुआ, तय बजट से कम खर्च में पूरा हुआ और भवन के उद्घाटन के समय उस पर लगी उद्घाटन पट्टिका में उपरोक्त दोनों तथ्यों का जिक्र शामिल था। क्या इस उदाहरण से तथा चीन, जापान और ताईवान के उदाहरणों से हम कुछ सीख सकते हैं ?

हरियाणा में पूर्व मंत्री तथा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे श्री फूल चंद मुलाना समय की पाबंदी के लिए जाने जाते हैं। एक बार मैंने उनसे पूछा था कि आप समय की पाबंदी का नियम कैसे निभा पाते हैं, कैसे हर आयोजन में आप समय पर पहुंच जाते हैं। इसका उत्तर दिखने में जितना साधारण था, उन शब्दों में उतनी ही गहराई भी है। श्री मुलाना ने मुझे कहा, “मैं वैसे ही हर जगह समय पर पहुंचता हूं, जैसे हर दूसरा आदमी देर से पहुंचता है!” उनका अभिप्राय यह था कि समय पर पहुंचना उतना ही आसान है, जितना देर से पहुंचना, यानी समय की पाबंदी मात्र एक आदत है। शुरू में हर आदत अनुशासन से बनती है, बाद में वह सिर्फ एक आदत होती है और हमारा अवचेतन मस्तिष्क उसे अपना लेता है तो वह सामान्य रुटीन बन जाती है।

मैं फिर कहना चाहूंगा कि पश्चिम से, या कहीं से भी अच्छी बातें सीखने में कोई बुराई नहीं है। दिमाग की खिड़की खुली रखने पर ही हम रोशनी अंदर आने दे सकते हैं। हमें भारत को जगद्गुरू कहने में गर्व होता है। जगद्गुरू बने रहने के लिए आंतरिक विकास एक आवश्यक शर्त है। आज जगद्गुरू भारत को हर अच्छी बात सीखने के लिए तैयार होना होगा, चाहे वह पश्चिम से आये या जापान, चीन अथवा ताइवान से। ***

Well-in-time Day
by : PK Khurana
(Pramod Krishna Khurana)

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